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जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास १०१. विमलनाथचरित' : (ज्ञान सागर)
यह ५ सर्गों का काव्य है । जिसमें तीर्थंकर विमलनाथ का वर्णन है । बीच-बीच में अवान्तर कथाओं का समावेश है। १०२. शान्तिनाथचरित : (ज्ञान सागर)
यह शान्तिनाथ के चरित पर वर्णित काव्य रचना है। रचयिता : रचनाकाल
इन दोनों विमलनाथचरित तथा शान्तिनाथचरित के रचयिता ज्ञानसागर हैं । ग्रन्थ में दी गई अन्तिम प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि ज्ञान सागर बृहत्तपागच्छ के रत्नसिंहसूरि के शिष्य थे। विमलनाथ चरित की रचना इन्होंने वि० सं० १५१७ (१४६० ई०) में की थी।' १०३. भुवनभानुचरित : (इन्द्र हंस गणि).
इस ग्रन्थ का दूसरा नाम बलिरनरेन्द्र कथानक भी है। १०४. विमलचरित : (इन्द्र हंस गणि)
इस चरितकाव्य में तीर्थङ्कर विमलनाथ का चरित नहीं अपितु इसमें मंत्री विमलशाह का चरित्र वर्णित है । इस काव्य का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है। १०५. बलिराजचरित : (इन्द्र हंस गणि)
बलिराजचरित नामक एक काव्य उपलब्ध है। रचयिता : रचनाकाल
उपर्युक्त तीनों चरितों के रचयिता इन्द्रहंसगणि हैं । ये धर्म हंसगणि के शिष्य थे। भुवनभानुचरित की रचना वि० सं० १५५४ (१४९७ ई०) में की थी। विमलचरित की रचना वि० सं० १५७८ (१५२१ ई०) में की थी तथा बलिराजचरित की रचना वि० सं० १५५७ (१५०० ई०) में की थी। १०६. प्रद्युम्नचरित : (सोम कीति)
यह १६ सर्गों का महाकाव्य है । इसमें श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का चरित्र निबद्ध है । इसकी रचना वि० सं० १५३० (१४७३ ई०) में की गई थी। १०७. यशोधरचरित : (सोम कीति) ___इसमें आठ सर्ग हैं जिनमें यशोधर का लोकप्रिय परम्परागत आख्यान निबद्ध है । इसकी १.हीरालाल हंसराज जामनगर १९१० ई० में प्रकाशित २. जैन सा० का बृहद् इ०, भाग-६, पृ० -१०३,११० ३.जिनरलकोश, पृ० ३५८
४.हीरालाल हंसराज जामनगर १९१५ ई० में प्रकाशित ५.जिनरत्नकोश, पृ० २९८ ६. वही, पृ० ३५८ ७.वहीं, पृ० २९८ ८.हिन्दी अनुवाद जैन ग्रन्थरलाकर कार्यालय, बम्बई १९१० ई० में प्रकाशित ९.जिनरलकोश, पृ० २६४
१०. हस्तलिखित प्रति नया मन्दिर दिल्ली में है