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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन थे। प्रभाचन्द्र ने प्रभावक चरित की रचना हेमचन्द्र के स्वर्गवास के ८० वर्ष बाद वि० सं० १३३४ (सन् १२७७ ई०) में की थी। इसका संशोधन आचार्य प्रद्युम्नसूरि ने किया था।' ४७. श्रेणिकचरित' : (जिनप्रभसूरि)
श्रेणिक चरित अष्टादश सर्गात्मक महाकाव्य है। इसमें राजा श्रेणिक (बिम्बसार) का चरित वर्णित है। काव्य में धार्मिक भावना का अतीव प्रदर्शन हुआ है। प्रस्तुत काव्य के अध्ययन से तत्कालीन समाज की जानकारी मिलती है । इस समय बौद्धों का बाहुल्य था।' रचयिता : रचनाकाल
श्रेणिक चरित, जिनप्रभसूरि द्वारा रचित काव्य है । ये लघुखरतरगच्छ के संस्थापक जिनसिंहसूरि के प्रशिष्य थे। तत्कालीन भारत का बादशाह मुहम्मद तुगलक जिनप्रभसूरि का बहुत सम्मान करता था । जिनप्रभसूरि ने श्रेणिकचरित की रचना वि० सं० (सन् १२९९ ई०) में की थी। ४८. शान्तिनाथचरित : (रामचन्द्रमुमुक्ष)
यह ग्रन्थ अद्यावधि अनुपलब्ध है । इसमें शान्तिनाथ भगवान् का चरित्र वर्णित है । रचयिता : रचनाकाल
___पुण्यात्रय कथाकोश के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध रामचन्द्र मुमुक्ष ने शान्तिनाथचरित १३ वीं शताब्दी में रचा । कन्नड़ कवि नागराज ने १३३१ ई० में रचित चम्पू में इनकी कृति का उल्लेख किया है। अतएव वे उनसे पूर्ववर्ती तो हैं ही। ४९. शालिभद्रचरित' : (धर्मकुमार)
___ यह सात सर्गात्मक महाकाव्य है । इसका कथानक हेमचन्द्राचार्य के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के १०वें पर्व महावीर चरित से लिया गया है। इसमें महावीर के समकालीन एक धनी गृहस्थ शालिभद्र का चरित निबद्ध किया गया है। रचयिता : रचनाकाल
शालिभद्रचरित के रचनाकार धर्मकुमार हैं । ये नागेन्द्र कुल के बिबुधप्रभ के शिष्य थें । उन्होंने शालिभद्रचरित की रचना वि० सं० १३३४ (१२७७ ई०) में की थी। ५०. श्रेणिकचरित' : (देवेन्द्र सूरि)
इस चरित काव्य में ७२९ पद्य हैं । मध्य में प्राकृत पद्यों का भी समावेश है । इसमें १.द्रष्टव्य - जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग-६, पृ०-२०५ २.जैन धर्म विद्या प्रसारक वर्ग पालिताना से ७ सर्ग प्रकाशित, शेष जैन शास्त्र भण्डार सम्भात में हस्तलिखित प्रति सुरक्षित है। ३.द्रष्टव्य - जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० ४६२ ४स्कंदास्येषु कृशानुशीलगमिते संवत्सरे वैक्रमे । बालेन्दु प्रतिपत्तिथौ विषगते सम्पूर्णमेवच्छनौ । आदर्शव्यधिते दयाकरमुनिः काव्यप्रियोऽस्मादिभम् । आरम्भस्य निमित्तभावमभजन्तस्यैव चाभ्यर्थन ॥-श्रेणिकच०,प्र०प० - २ ५.तीर्थार महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ०७०-७१ ६.यशोविजय जैन ग्रन्थमाला बनारस १९१० ई० में प्रकाशित ७.जिनरत्नकोश, पृ० २८२ ८.ऋषभदेव केशरीमल श्वेताम्बर जैन संस्था, रतलाम,१९३७ ई० में प्रकाशित