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जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास
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राजा श्रेणिक तथा उसकी पारिवारिक, धार्मिक घटनाओं का वर्णन है । यह एक विशुद्ध धार्मिक
चरितकाव्य है ।
रचयिता : रचनाकाल
इस चरितकाव्य के रचयिता देवेन्द्रसूरि हैं जो जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य थे । इनका स्वर्गवास वि० सं० १३२७ में (सन् १२७० ई० में) हुआ था । अतः इनका काल इससे पूर्व निश्चित है ।
५१. नेमिचरित' : (विक्रम)
यह काव्य निर्णयसागर प्रेस बम्बई से हिन्दी पद्यानुवाद सहित एवं इन्दौर से "नेमिदूत" नाम से छपा है । किन्तु इसका यथार्थ नाम नेमिचरित है । कवि ने स्वयं लिखा है
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"श्रीमन्नेमेः चरितविशदं सांगणस्यांगजन्मा ।
चक्रे काव्यं बुधजनमनः प्रीतये विक्रमाख्यः ।।
और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस काव्य में दूत नाम की कोई वस्तु है ही नहीं । इस काव्य में मेघदूत के १२५ श्लोकों को अपनाया गया है।
रचयिता : रचनाकाल
इस चरितकाव्य के रचयिता सांगण के पुत्र विक्रम थे । श्री नाथूराम प्रेमी ने इनका समय १३ वीं शताब्दी माना है और विनयसागर ने १४वीं शताब्दी ।
तेरहवीं शताब्दी के उक्त चरितकाव्यों के अतिरिक्त अनेक अन्य काव्य भी उपलब्ध हैं । इनमें वासवसेन कृत यशोधरचरित महत्त्वपूर्ण काव्य है । इसकी हस्तलिखित प्रति बम्बई के सरस्वती भवन और जयपुर के बाबा दुलीचन्द्र भण्डार में है 14
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चतुर्दश शताब्दी
५२. पुण्डरीकचरित : ( कमल प्रभ सूरि )
यह चरितकाव्य आठ सर्गों में विभक्त पौराणिक महाकाव्य है । प्रथम दो सर्गों में भगवान ऋषभदेव और भरत बाहुबलि का वर्णन है । इसके बाद पुण्डरीक का चरित्र निबद्ध है । श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार पुण्डरीक भगवान ऋषभदेव के प्रथम गणधर थे । इसमें कहीं-कहीं पर गद्य
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१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० - १९०
२. निर्णयसागर प्रेस बम्बई एवं दि० जैनागम प्रकाशन समिति कोटा से वि० सं० समिति इन्दौर से भी इसी नाम से वी० नि० सं० २५०० में प्रकाशित ४. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० - ५४९ ६. जैन साहित्य संशोधन पूना, १८२५ ई० "बृहट्टिपणिका' में प्रकाशित
२००५ में प्रकाशित । वीर निर्वाण ग्रन्थ प्रका० ३. नेमिदूत (इन्दौर प्रकाशन) पद्य १२६ ५. वही, पृ० २८९ की पाद टिप्पणी - १