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जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास राजा बीसलदेव का वर्णन और १२५५-५८ ई० के गुजरात के भीषण काल का चित्रण किया गया है। रचयिता : रचनाकाल ___ वर्णित तीनों काव्यों के रचयिता का नाम सर्वानन्दसूरि है । सर्वानन्दसूरि सुधर्मागच्छीय शीलभद्रसूरि के प्रशिष्य और गुणरत्नसूरि के शिष्य थे । चन्द्रप्रभचरित के अन्त में प्राप्त गुरुपरम्परा इस प्रकार है - जयसिंह → चन्द्रप्रभसूरि → धर्मघोषसूरि → शीलभद्रसूरि → सर्वानंदसूरि। इन्होंने पार्श्वनाथचरित की रचना १२३४ ई०२ तथा चन्द्रप्रभचरित की रचना १२४५ ई० में की थी । अतएव इनका समय १३वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है। ४४. शान्तिनाथचरित: (मुनि देव सूरि) __यह सात सर्गात्मक काव्य है । इसमें पुराणों की तरह अलौकिक व आश्चर्यजनक प्रसंगों का पूर्णता से प्रयोग हुआ है । काव्य में अनुष्टुप् - छन्द का प्रयोग है । सर्ग के अन्त में छन्दपरिवर्तन है । भाषा सरल एवं प्रसादगुणयुक्त है । रचयिता : रचनाकाल
शान्तिनाथचरित के रचयिता मुनिदेवसूरि हैं । ये वृहद्गच्छीय मदनचन्द्रसूरि के शिष्य थे । इन्होंने शान्तिनाथचरित की रचना वि० सं० १३२२ (सन् १२६५ ई०) में की थी। ४५. श्रेयांसनाथचरित': (मान तुंग सूरि)
यह १३ सर्गात्मक महाकाव्य है । सर्गों का नामकरण विषयवस्तु के आधार पर किया गया है । सर्गान्त में भावी कथानक की संक्षेप में सूचना दे दी गई है। रचयिता : रचनाकाल
श्रेयांसनाथचरित के रचयिता मानतुंगसूरि हैं । ये रत्नप्रभसूरि के शिष्य थे । इन्होंने श्रेयांसनाथचरित की रचना वि० सं० १३३२ (सन् १२७५ ई०) में की थी। ४६. प्रभावकचरित': (प्रभा चन्द्र)
यह बड़ा ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । क्योंकि इसमें विक्रम की प्रथम शताब्दी से १३ वीं शताब्दी तक के आचार्यों के चरित्र निबद्ध हैं । सम्पूर्ण-संस्कृत साहित्य में यह अपने ढंग का एकमात्र चरित्र काव्य है। रचयिता : रचनाकाल
प्रभावक चरित के रचयिता प्रभाचन्द्र हैं । प्रभाचन्द्र चन्द्रकुलीय राजगच्छ के चन्द्रप्रभ के शिष्य १.द्रष्टव्य - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग - ६, पृ० -१८ २.जिनरत्नकोश, पृ० - २४५ ३.जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० - ९८ ४ .१०लि. प्रति हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मन्दिर पाटन में है ५.बैन आत्मानंद सभा भावनगर से गुजराती भाषान्तर १९५३ ई० में प्रकाशित ६.जिनरलकोश, पृ० ४०० ७.निर्षवसागर प्रेस बम्बई, सम्पा० पं० हरिनन्द शर्मा,१९०९ ई० में प्रकाशित