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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन
अभयकुमार का बड़ा ही सुन्दर रुचिकर आख्यान निबद्ध है । भाषा मुहावरेदार तथा लोकोक्तिपरक । काव्य सभी दृष्टियों से उत्कृष्ट है ।
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रचयिता : रचनाकाल
अभयकुमारचरित के रचयिता चन्द्रतिलक उपाध्याय हैं। ये चन्द्रगच्छीय थे । इनकी गुरु परम्परा इस प्रकार है- वर्धमानसूरि → जिनेश्वरसूरि → जिनवल्लभसूरि → जिनदत्तसूरिजिनचन्द्रसूरि → जिनपतिसूरि → जिनेश्वरसूरि चन्द्रतिलक उपाध्याय । अभयकुमारचरित
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की रचना वि० सं० १३१२, (सन् १२५५ ई०) में हुई थी ।
३९. मल्लिनाथचरित' : (विनय चन्द्र सूरि )
यह चरित ८ सर्गात्मक काव्य है । इसमें १९ वें तीर्थंङ्कर मल्लिनाथ का चरित वर्णित है । मध्य में महासती दमयन्ती का कथानक भी आया है ।
४०.
पार्श्वनाथचरित: (विनय चन्द्र सूरि )
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यह एक चिनयांकित महाकाव्य है । इसमें धार्मिक विचारधाराओं का अच्छा प्रतिपादन हुआ है। यह अभी तक मुद्रित नहीं हुआ है। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मन्दिर पाटन में हैं । काव्य सरल एवं प्रसादगुणयुक्त है ।
रचयिता : रचनाकाल
ऊपर वर्णित चरितों के रचयिता का नाम विनयचन्द्रसूरि है । ग्रन्थ प्रशस्ति के अनुसार इनकी वंश परम्परा इस प्रकार है- चन्द्रगच्छीय शीलगुणसूरि → मानतुंगसूरि → , रविप्रभसूरि → (१) नरसिंहसूरि, (२) नरेन्द्रसूरि, (३) विनयचन्द्रसूरि । इनका साहित्यकाल वि० सं० १२८६ से १३४५ तक (१२२९-१२८८ ई०) तक माना जाता है ।"
४१. पार्श्वनाथचरित' : (सर्वानन्द सूरि )
यह चरित ५ सर्गात्मक काव्य है । इसमें १५६ पृष्ठ नहीं हैं। कुल ३४५ पृष्ठ हैं। यह अत्यन्त जीर्ण अवस्था में उपलब्ध काव्य है ।
४२. चन्द्रप्रभचरित' : (सर्वानन्द सूरि )
यह १३ सर्गात्मक महाकाव्य है । इसमें आश्चर्यजनक अवान्तर कथाओं तथा धार्मिक उपदेशों की भरमार है । जिससे यह काव्य नीरस सा लगता है ।
४३. जगड्डु-चरित: ( सर्वानन्द सूरि)
इस काव्य में ७ सर्ग हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से इसका बड़ा ही महत्त्व है। क्योंकि इसमें
१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ०-१९३
२. जिनरत्नकोश, पृ० १२
३. हस्तलिखित प्रति हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मन्दिर पाटन में है। ४. भूराभाई हर्षचन्द्र यन्त्रालय, वाराणसी, २४३८
६. ताडपत्रीय प्रति संघवी पाडा भण्डार पाटन में है
८. ६० लिखित प्रति हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मन्दिर पाटन में है
५. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पृ० १२३ ७. जैन साहित्य का बृहद् हतिहास, पृ० १२१