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जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास
गुण विद्यमान हैं।
रचयिता : रचनाकाल
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इन दोनों काव्यों के रचयिता का नाम अर्हदास है । ग्रन्थों के आन्तरिक अनुशीलन से ज्ञात होता है कि ये पहले जैनानुयायी नहीं थे । वैदिक पुराणों तथा हिन्दू धर्म का उन्हें प्रगाढ़ परिज्ञान था । ये सागार - धर्मामृत आदि के रचयिता पं० आशाधर के समकालीन थे । क्योंकि मुनिसुव्रतचरित में उन्होंने स्वयं लिखा है कि मैंने आशाधर की उक्तियों से सत्पथ पाया है ।२ श्री पार्श्वनाथ जिनदास फड़कुले इनका समय ईसा की तेरहवीं शताब्दी मानते हैं । जिनरलकोश में अर्हदास को पं० आशाधर का शिष्य कहा है । परन्तु ये उनके शिष्य नहीं बल्कि उनसे प्रभावित अवश्य थे, ऐसा सुनिश्चित है ।
३६. शान्तिनाथचरित: ( अजित प्रभ सूरि )
यह छः सर्गात्मक काव्य है जिसमें शन्तिनाथ भगवान् का चरित्र निबद्ध है ।
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रचयिता : रचनाकाल
इस काव्य के रचयिता का नाम अजितप्रभसूरि है जो पौर्णमिकगच्छ के वीरप्रभसूरि के शिष्य थे। इन्होंने शान्तिनाथचरित की रचना वि० सं० १३०७ (सन् १२५० ई०) में की थी । इनकी गुरु परम्परा इस प्रकार है - चन्द्रसूरि → देवसूरि तिलकप्रभ वीरप्रभ → अजितप्रभ ।" ३७. प्रत्येकबुद्धचरित: (लक्ष्मी तिलकगणि)
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इस काव्य का दूसरा नाम प्रत्येकबुद्ध महाराजर्षिचतुष्कचरित्र भी है । प्रत्येकबुद्धचरित में करकण्डु, द्विमुख, नमि और नग्गति नामक चार प्रत्येक बुद्धों का चरित वर्णित है । यह १७ सर्ग वाला काव्य है ।
रचयिता : रचनाकाल
इस चरितकाव्य के रचयिता लक्ष्मीतिलकगणि हैं । इनके साथ-साथ जिनरत्नसूरि भी इस काव्य के रचयिता हैं । ये दोनों जिनेश्वरसूरि के शिष्य थे । इन्होंने प्रत्येकबुद्धचरित की रचना वि० सं० १३११ (१२५४ ई०) में की थी । "
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३८. अभयकुमारचरित: (चन्द्र तिलक सूरि)
यह द्वादश सर्गात्मक महाकाव्य है । इसमें महाराजा श्रेणिक ( बिम्बसार ) के पुत्र
१. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग - ४, पृ०-५३
३. पुरुदेव चम्पू भूमिका, पृ०-४
५. जिनरत्नकोश, पृ० ३७९
७. जैसलमेर बृहद् भण्डार में इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ हैं । ८. जिनरलकोश, पृ० २६३
९. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ६, पृ० १६४
१०. जैन आत्मानंद सभा, भावनगर, १९१७ ई० में दो भागों में प्रकाशित
२. मुनिसुक्तचरित, पृ० १/६४-६५
४. जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर १९१६ ई० में प्रकाशित
६. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० १०७