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जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास २६. चतुर्विशतिजिनेन्द्रचरित': (अमर सूरि)
यह चरित काव्य २४ अध्यायों तथा १८०२ पद्यों में रचित है । इसमें २४ तीर्थंकरों का क्रमशः संक्षिप्त जीवनचरित वर्णित है । इसमें काव्य तत्त्वों का अभाव है । २७. अम्बडचरित': (अमर सूरि)
विशेष रूप से श्वेताम्बर जैन परम्परा में बौद्धों की तरह प्रत्येक बुद्धों की कल्पना की गई है । इस काव्य में अम्बड नामक प्रत्येक बुद्ध का वर्णन किया है जो सरल किन्तु सशक्त गद्य में लिखा गया है। रचयिता : रचनाकाल
__उपर्युक्त दोनों चरितों के रचयिता अमरसूरि हैं, जिन्होंने बालभारत की रचना की थी। ये वाथरगच्छीय जिनदत्तसूरि के शिष्य थे । इन्होंने १३वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अनेक काव्यों की रचना की थी। २८. धन्यशालि-चरित': (श्री पूर्ण चन्द्र सूरि)
इस काव्य में ६ परिच्छेद तथा १५ पद्यात्मक प्रशस्ति हैं । इसमें तीर्थंकर महावीर के समकालीन राजगृह के निवासी धन्यकुमार और शालिभद्र नामक दो श्रेष्ठियों का वर्णन है । २९. अतिमुक्तकचरित: (श्री पूर्ण चन्द्र सूरि)
अतिमुक्तकचरित में कुमार अतिमुक्तक का वर्णन किया गया है । ये तीर्थकर महावीर के समय के एक राजकुमार थे। ३०. कतपुण्यचरितः (श्री पूर्ण चन्द्र सूरि)
इस चरित काव्य में कृतपुण्य सेठ का चरित्र चित्रण निबद्ध है । रचयिता : रचनाकाल
ऊपर लिखित तीनों चरितों के रचयिता श्री पूर्णचन्द्रसूरि हैं, जो जिनपति सूरि के शिष्य थे । धन्यशालिभद्र काव्य की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख करते हुए ग्रन्थ प्रणयन का समय वि० सं० १२८५ (सन् १२२८ ई०) में और स्थान जैसलमेर बतलाया है। ३१. वासुपूज्यचरित': (श्री वर्धमान सरि) ।
यह चरितकाव्य ४ सर्गों का काव्य होते हुए भी विशाल काव्य (महाकाव्य) है । १.गायकवाड़ औरयिन्टल सीरीज बड़ौदा, १९३२ ई० में प्रकाशित २.हीरालाल हंसराज जामनगर, १९१० ई० में प्रकाशित ३.जिनदत्त सूरिज्ञान भण्डार सूरत,१९३४ ई० में प्रकाशित ४.जिनदत्त सूरि प्राचीन पुस्तकोद्वार फण्ड सूरत, १९४४ ई० में प्रकाशित
५.जिनरत्नकोश, पृ०-९५ ६.धन्यशालिभद्रकाव्य, प्रशस्ति पद्य, ११-१२ ७.जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर १९०९ तथा हीरालाल हंसराज जामनगर, १९२८ ई० में प्रकाशित