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जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास
१९. अममस्वामिचरित' : (मुनि रत्न सूरि )
यह बीस सर्गों का महाकाव्य है, जिसमें भावी तीर्थङ्कर अमम का चरित निबद्ध किया गया है । जिसमें श्रीकृष्ण के जीव को आगामी उत्सर्पिणीकाल में अमम नामक तीर्थंङ्कर होने की कथा वर्णित है । जिसमें प्रसंगवश अनेक अवांतर कथायें भी आई हैं ।
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बीसवें तीर्थंकर पर मुनिसुव्रतचरित होने का भी उल्लेख मिलता है ।
रचयिता : रचनाकाल
इन काव्यों के रचयिता मुनिरलसूरि हैं जो चन्द्रगच्छीय समुद्रघोष के शिष्य थे । समुद्रघोषसूरि चन्द्रप्रभसूरि के प्रशिष्य और धर्मघोषसूरि के शिष्य थे । अममस्वामिचरित की रचना उन्होंने वि० सं० १२५२ (११९५ ई०) में की थी । अतः इनका समय १२वीं शताब्दी का अन्त है ।
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२०. पाण्डवचरित : (देव प्रभ सूरि)
यह एक १८ सर्गों का महाकाव्य है जिसमें महाभारत के पर्वों के अनुसार १८ पर्वों का कथानक है । प्रायः इसमें पौराणिक शैली प्रयुक्त हुई है। इसके छठे सर्ग में नलोपाख्यान, १६ वें सर्ग में तीर्थंङ्कर नेमिनाथ का चरित वर्णन और १८वें सर्ग में पाण्डवों का निर्वाण तथा बलदेव का स्वर्गगमन वात है ।
२१. मृगावतीचरित: : (देव प्रभ सूरि )
इस चरितकाव्य में वत्सराज उदयन की माता का चरित वर्णित है । वे राजा चेटक की पुत्री और तीर्थंकर महावीर की उपासिका थी । इसमें उदयन तथा वासवदत्ता का चरित्र भी वर्णि हुआ है। मध्य में प्रसंगवश अवान्तर कथायें भी आयी हैं ।
रचयिता : रचनाकाल
इन दोनों चरितकाव्यों के रचयिता देवप्रभसूरि हैं । पाण्डवचरित की प्रशस्ति से पता चलता है कि देवप्रभसूरि मलधारी गच्छ के थे । उन्होंने इस ग्रन्थ को देवानन्द सूरि के अनुरोध पर रचा था । इनका रचनाकाल १२वीं शताब्दी तथा १६वीं शताब्दी का सन्धिकाल है । त्रयोदश शताब्दी
२२. सनत्कुमारचरित : ( जिनपाल उपाध्याय)
इस चरितकाव्य में चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार का चरित्र २४ सर्गों में वर्णित है । काव्य
१.पन्यासमणिविजय ग्रन्थमाला अहमदाबाद से वि० सं० १९९८ में प्रकाशित
२. संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, भाग-१, रामजी उपाध्याय ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ०-१२०
४. निर्णयसागर काव्यमाला सीरीज, १९११ ई० में प्रकाशित
५. हीरालाल हंसराज जामनगर, १९०९ ई० में प्रकाशित
६. हस्तलिखित प्रति - श्री अगरचन्द्र जी नाहटा बीकानेर के व्यक्तिगत भण्डार में है ।