________________ षष्ठः सर्गः 25 अर्थः कार्थः (कु को कदादेश ) = दुःखम्, तद्वत्तं करोतीति ('सुखादयो वृत्तिविषये तद्वति वर्तन्ते ) कदर्थयति इति कदर्थ + णिच् + क्तः ( कमणि ) नामघातु / रागदी राग + Vदृश् +णिन् ( कर्तरि ) / _अनुगद -( कभी ) आँखें मूद लेना और ( कभी) खुलकर देख लेनादोनों ( बातों) से तंग आये हुए नल उन ( स्त्रियों) को कटाक्षों-कनखियों से अवलोकन करते हुए राग-वश देखते हुये-जैसे प्रतीत हुये बड़े लज्जित हुए। सज्जन लोगों को उतनी अधिक लज्जा दूसरों से नहीं होती जितनी अपनी आत्मा से / / 22 // टिप्पणी-बेचारे नल बड़े असमञ्जस में पड़ गये, स्त्रियों के नंगे अंग देखें तो पाप लगता है, आँखें मोच लें तो अन्य स्त्रियों से टकरा जाते हैं रास्ता देखने के लिए उन्होंने यही उपाय निकाला कि खुलकर न देखा जाय, वल्कि कनखियों से देखा जाय, किन्तु कनखियों से देखने में वे रागी जैसे लगते हैं क्यों कि रागी लोग ही कनखियों से देखा करते हैं / नल देखो तो उन्हें राग वश नहीं प्रत्युत विवश हो कनखियों से देख रहे थे। वे सज्जन जो थे नहीं तो अदृश्य होने के कारण किसी से लजाने की बात ही नहीं थी। कारण बताने से काव्यलिङ्ग तो स्पष्ट ही है। विद्याधर 'रागदर्शीव' में उपमा मानते हैं, लेकिन हमारे विचार से यह उत्प्रेक्षा है, क्योंकि नल. वास्तव में रागी की तरह रागवश कटाक्ष से नहीं देख रहे थे, बल्कि पाप से बचने के लिए वैसा कर रहे थे, अतः यह कल्पना ही है। चौथा पाद ऊपर कही विशेष बात का सामान्य बात से समर्थन कर रहा है, अतः अर्थान्तरन्यास है / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। रोमाञ्चिताङ्गीमनु तत्कटाक्षान्तेन कान्तेन रतेनिदिष्टः / मोघः शरौघः कुसुमानि नाभूत्तद्धर्यपूजां प्रति पर्यवस्यन् // 23 // अन्वयः-रोमाञ्चिताङ्गीम् अनु तत्कटाक्षः भ्रान्तेन रतेः कान्तेन निदिष्टः कुसुमानि शरोघः तद्धैर्यपूजाम् प्रति पर्यवस्यन् मोघः न अभूत् / ____टीका नलाङ्गसंसद् िरोमभिः लोमभिः अञ्चितम् हृषितम् ( तृ० तत्पु०) अङ्गम् गात्रम् ( कर्मधा० ) यस्याः तथाभूताम् (ब० वो०) स्त्रियम् अनुलक्ष्यीकृत्य तस्य नलस्य कटाक्षः अपाङ्गविलोकनैः (10 तत्पु० ) भ्रान्तेन जातभ्रमेण रतेः एतदाख्याया स्त्रियः कान्तेन पत्या कामदेवेनेत्यर्थः निदिष्टः प्रहितः प्रक्षिप्त इति यावत् कुसुमानि पुष्पाणि शराणां वाणानाम ओघः समहः (ष०तत्पु०)