Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८]
पयदुवजोगी अप्पाबहुअं 8 सव्वत्योवाणि पदेसगुणहाणिहाणंतरफदयाणि ।।
१४. पदेसगुणहाणिट्ठाणंतरं णाम किं ? जम्मि उद्देसे पढमफद्दयादिवग्गणा अवट्ठिदविसेसहाणीए गच्छमाणा दुगुणहीणा जायदे तदवहिपरिच्छिण्णमद्धाणं गुणहाणिट्ठाणंतरमिदि भण्गदे । एदम्मि पदेसगुणहाणिट्ठाणंतरे अणंताणि फद्दयाणि अभवसिद्धिएहितो अणंतगुणमेत्ताणि भत्थि ताणि सव्वत्थोवाणि ति भणिदं होइ । .. ® जहएणो णिक्खेवो अणंतगुणो।
६१५. कुदो? तत्थाणताणमणुभागपदेसगुणहाणीणं संभवादो । कथमेदं परिच्छिण्णं ? एदम्हादो चेव सुत्तादो।
* जहरिणया अइच्छावणा अणंतगुणा। ६ १६. तत्तो वि अणंतगुणाणि गुणहाणिट्ठाणंतराणि विसईकरिय पयदृत्तादो। ® उक्कस्सयमणुभागकंडयमणंतगुण ।
६ १७. कुदो ? उक्कस्साणुभागसंतकम्मस्स अणंतताणं भागाणं उक्स्साणुभागखंडय सरूवेण गहणोवलंभादो।
ॐ उक्कस्सिया अइच्छावणा एगाए वग्गणाए ऊणिया । * प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर सबसे स्तोक हैं। 8 १४. शंका-प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर किसे कहते हैं !
समाधान-जिस स्थान पर प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणा अवस्थित विशेष हानिरूपसे जाती हुई दुगुनी हीन हो जाती है उस अवधि तकके अध्धानको गुणहानिस्थानान्तर कहते हैं। इस प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरमें अभव्योंसे अनन्तगुणे अनन्त स्पर्धक होते हैं। वे सबसे स्तोक हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* उनसे जघन्य निक्षेप अनन्तगुणा है। ६ १५. क्योंकि जघन्य निक्षेपमें अनन्त अनुभागप्रदेशगुणहानियां सम्भव हैं। शंका-यह कैसे जाना ? समाधान-इसी सूत्रसे जाना।
* उससे जघन्य अतिस्थापना अनन्तगुणी है ।
६ १६. क्योंकि जघन्य निक्षेपमें जितने गुणहानिस्थानान्तर उपलब्ध होते हैं उनसे भी अनन्तगुणे गुणहानिस्थानान्तरोंको विषय कर इसकी प्रवृत्ति हुई है।
* उससे उत्कृष्ट अनुभागकाण्डक अनन्तगुणा है।
६ १७. क्योंकि उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मके अनन्त बहुभागोंका उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकरूपसे प्रहण किया गया है।
* उससे उत्कृष्ट अतिस्थापना एक वर्गणाप्रमाण न्यून है।