Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८]
अणुभागोककुणासरूवणिद्देसो अणंताणं फद्दयाणमोकड्डणा ण संभवदि ति पदुप्पाएदुमिदमाह
* अण्णाणि अणंताणि फद्दयाणि जहणणणिक्खेवमेत्ताणि च ण प्रोकडिजति ।
६६. आदीदो प्पहुडि जहण्याइच्छावणामेत्तफयाणमुवरिमफद्दयं ताव ण ओकडिजदि, तस्साइच्छावणसंभवे विणिक्खेवविसयादसणादो। तत्तो अणंतरोवरिमफद्दयं पि ण ओकड्डिजदि। एवमणंताणि फद्दयाणि जहण्णणिक्खेवमेत्ताणि ण ओकड्डिजति । कि कारणं ? णिक्खेवविसयासंभवादो । एत्तो उवरि ओकडणाए पडिसेहो णस्थि ति पदुप्पायणट्ठमिदमाह
ॐ जहणणो शिक्खेवो जहरिणया अइच्छावणा च तेत्तियमेत्ताणि फहयाणि आदीदों अधिच्छिदूण तदित्थफयमोकडिजह ।
६ १०. अइच्छावणा-णिक्खेवाणमेत्थ संपुण्णत्तदंसणादो। विवक्खियफयादो हेट्ठा जहण्याइच्छावणामेत्तमुल्लंछिय हेडिमेसु फद्दएसु जहण्गणिक्खेत्रमेत्तेसु जहण्णफयपजवसाणेसु तदित्यफद्दयोकड्डणासंभयो ति भणिदं होइ । एतो उपरिमफदएसु ण कत्थ वि ओकडणा पडिहम्मइ, जहण्णाइच्छावणं धुवं काऊण जहण्णणिक्खेवस्स फद्दयुत्तरकमेण
समाधान-जितनी जघन्य अतिस्थापना है उतने हैं।
इनसे उपरिम अनन्त स्पर्धकोंका भी अपकर्षण सम्भव नहीं है इस बातका कथन करनेके लिए इस सूत्रको कहते हैं
* जघन्य निक्षेपप्रमाण अन्य अनन्त स्पर्धक भी अपकर्षित नहीं होते।
६६. प्रारम्भसे लेकर जघन्य अतिस्थापनाप्रमाण स्पर्धकोंसे भागेका स्पर्धक अपकर्षित नहीं होता, क्योंकि उसकी प्रतिस्थापना सम्भव होने पर भी निक्षेपविषयक स्पर्धक नहीं देखे जाते । उससे अनन्तर उपरिम स्पर्धक भी अपकर्षित नहीं होता। इस प्रकार जघन्य निक्षेपप्रमाण अनन्त स्पर्धक अपकर्षित नहीं होते।
शंका-इसका कारण क्या है ? समाधान-क्योंकि निक्षेपविषयक स्पर्धकोंका अभाव है।
अब इससे ऊपर अपकर्षणका निषेध नहीं है इस बातका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
____ * प्रारम्भसे लेकर जघन्य निक्षेप और जघन्य अतिस्थापनाप्रमाण जितने स्पर्धक हैं उतने स्पर्धकोंको उल्लंघनकर वहाँ जो स्पर्धक स्थित है वह अपकर्षित होता है। .
६ १०. क्योंकि यहाँ पर अतिस्थापना और निक्षेप पूरे देखे जाते हैं। विवक्षित स्पर्धकसे पूर्वके जघन्य अतिस्थापनामात्र स्पर्धकोंको उल्लंघनकर उनसे पूर्वके जघन्य स्पर्धक तकके जघन्य निक्षेपप्रमाण स्पर्धकोंमें वहाँपर स्थित स्पर्धकका अपकर्षण होना सम्भव है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब इससे उपरिम स्पर्धकोंका कहीं भी अपकर्षण होना बाधित नहीं है, क्योंकि जघन्य अतिस्थापनाको ध्रुव करके जघन्य निक्षेपकी उत्तरोत्तर एक एक स्पर्धकके क्रमसे वृद्धि देखी जाती है