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साधने की क्रिया को अध्यात्म कहा है। 11 साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री भी अपने शोध आलेख में लिखा है कि शरीर, वाणी और मन की भिन्नता होने पर भी उनमें
चेतना गुण की जो सदृशता है वही अध्यात्म है । 12
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संक्षेप में हम यह कह सकते है कि जब व्यक्ति शरीर एवं मन से आत्मा के ज्ञाता द्रष्टा स्वरूप की भिन्नता को स्वीकार करता है, तब वह अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है ।
अध्यात्म का सम्बंध आत्मा से है और तनाव का सम्बन्ध शरीर व मन से है। जब तक देहासक्ति है, तनाव बना रहेगा और जब व्यक्ति देह से ऊपर उठ कर देहातीत बन जाता है तो वह अध्यात्म की और अग्रसर हो जाता है तथा तनावमुक्त हो जाता है ।
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जब तक देह के प्रति ममत्व भाव है व्यक्ति आत्मा का अनुभव नहीं कर सकता, क्योंकि प्रत्येक प्राणी शारीरिक सुरक्षा, सुख एवं सुविधा को पाने के प्रयास में लगा रहता है। आज के युग में मानव के पास हर सुख सुविधा है -धन, वैभव, भोग-विलास के साधन, सुरक्षा के लिए अनेक तेजस्वी शस्त्र आदि । लेकिन फिर भी वास्तविकता यह है प्रत्येक मानव तनावों एवं अशांति से ग्रस्त है। मानव के प्रयास तो शांति प्राप्त करने के लिए होते हैं, फिर भी वह अधिक तनावग्रस्त होता जा रहा है। विज्ञान ने आज कई मशीनों और यंत्रों का विकास किया है। शिक्षा और सुखसुविधा प्राप्त करने के कई साधनों का विकास किया है, फिर भी हर एक व्यक्ति अशांत है। जहाँ एक ओर अनेक भौतिक सुख सुविधाएँ है, वही दूसरी ओर दुःख और समस्याओं का भी अम्बार लगा हुआ है।
हमें यह जान लेना चाहिए कि आखिर तनाव नामक इस विश्व-व्यापी बीमारी के कारण क्या हैं? हमें उसके कारणों को खोजकर उनका निराकरण
41 निजस्वरूप जे किरिया साधे तेह अध्यात्म कहीये रे, 42 अध्यात्मसार, (शोधग्रंथ), पृ. 28
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श्रेयांसनाथ का स्तवन
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