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सत्य यह है कि मानसिक असामान्य परिवर्तन ही शारीरिक रसायनों में परिवर्तन के कारण है और यही मानसिक असामान्यता ही तनाव है। आज हम तनाव की व्याख्या न करके तनाव के दैहिक परिणामों की या अधिक से अधिक हमारे व्यवहार के असंतुलन की अवस्था की व्याख्या कर रहे हैं। तनावमुक्ति के लिए या तनाव प्रबंधन के लिए आवश्यकता है, मानसिक संवेदनाओं को देखने की। यदि हम दैहिक परिणामों को मानसिक संवेदनाओं के रूप में देखेंगे तो हम मानसिक तनाव के साथ-साथ दैहिक तनाव से भी मुक्त होने में सफल हो सकेंगे। जैनदर्शन के अनुसार भी तनाव में मन की प्रधानता रही है। मन ही संसार भ्रमण का कारण, अर्थात् तनावपूर्ण स्थिति का हेतु है।
वस्तुतः मनोवैज्ञानिक आत्मा व मन को एकरूप मानते हैं, किन्तु जैनदर्शन में मन को एक मनोदैहिक संरचना माना गया है, जिसके दो पक्ष हैं - द्रव्य मन
और भाव मन। तनाव का कारण भाव मन है, जिसके मलिन होने पर या असंतुलित होने पर तनाव उत्पन्न होते हैं।
तनाव का आध्यात्मिक अर्थ
तनाव शब्द का अर्थ हम पूर्व में समझ चुके है। तनाव शब्द का आध्यात्मिक अर्थ जानने से पूर्व यह जरूरी है कि हम आध्यात्मिक शब्द का अर्थ भी समझ ले। डॉ. सागरमल जैन के अभिनंदन ग्रंथ में उनका एक लेख है अध्यात्म और विज्ञान। उसमें कहा गया है कि अध्यात्म शब्द अधि + आत्म से बना है। अधि उपसर्ग विशिष्टता का सूचक है, अर्थात् जो आत्मा की विशिष्टता दे वही अध्यात्म है।39
'आत्मानम् अधिकृत्य यद्वर्तते तद अध्यात्मम्'40 आत्मा को लक्ष्य करके जो भी क्रिया की जाती है वह अध्यात्म है। आनंदघनजी ने भी आत्मस्वरूप को
39 डॉ. सागरमलजी जैन अभिनंदन ग्रंथ - अध्यात्म और विज्ञान, पृ. 2 40 अभिधान राजेन्द्रकोश, भाग-1, पृ. 257
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