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• कभी-कभी नकारात्मक सोच भी बन जाती है। उदाहरण :- अपना कोई प्रिय व्यक्ति किसी दुर्घटना में मर जाता है तो उसके दुःख में सोचने लगता है कि ऐसा किसी दूसरे के साथ नहीं होना चाहिए।
• व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी आ जाती है।
• कभी-कभी व्यक्ति हर बात या घटना में नकारात्मक विचार ही करता है।
• कोई अच्छा भी कर रहा हो, किन्तु उसे गलत ही लगता है।
3. तनाव प्रबंधन का मनोवैज्ञानिक अर्थ -
चाहे समकालीन मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में तनाव हमारी मनोदैहिक अवस्था के प्रतीक हों, परन्तु जब हम तनाव के कारणों का विश्लेषण करते हैं, तो यह पाते हैं कि तनाव का जन्म हमारी मनोदशा या मनोवृत्ति से ही होता है। वैज्ञानिक प्रयोगों की दृष्टि से चाहे तनाव को दैहिक संवेदना के रूप में देखा जाता हो, किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से तनाव एक मानसिक उत्पीड़न की अवस्था ही है। तनाव की दशा में हमारी चित्तवृत्ति अशांत होती है और चित्त की यह संवेगात्मक विसंगति ही तनाव कही जा सकती है।
मनोविज्ञान वह विज्ञान है, जो प्राणी के व्यवहार तथा मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक द्वन्द्व एवं दैहिक प्रक्रियाओं तथा परिवेश के साथ उनके सम्बन्धों का अध्ययन करता है। इन दैहिक व मानसिक प्रक्रियाओं के विचलन को ही तनाव कहा जाता है। वस्तुतः कुछ मनोवैज्ञानिकों ने दैहिक स्तर पर होने वाले असामान्य परिवर्तन को ही तनाव कहा है।
36 मनोविज्ञान की पद्धति एवं सिद्धांत, डॉ. जे.डी. शर्मा, पृ. 16 37 मनोविज्ञान की पद्धति एवं सिद्धांत, डॉ. जे.डी. शर्मा, पृ. 16
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