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विषय
आश्रम में गये वहाँ विकथा करते हुए तापसोंसे श्रावस्ती नगरी के राजा एणीपुत्रकी प्रियंगुसुन्दरी कन्याका समाचार जानकर नगरमें प्रविष्ट हुए। वहाँ कामदेवके मन्दिरके आगे निर्मित तीन पाँव के सुवर्णमय भैंसाको देखकर उन्होंने वहाँके ब्राह्मणोंसे उसका परिचय पूछा । एक ब्राह्मणने इसके उत्तर में उन्हें मृगध्वज केवली और महिषका सारा चरित्र सुनाया
हरिवंशपुराणे
एकोनत्रिंशत्तम सर्ग
वसुदेव कुमारका बन्धुमती और प्रियंगु सुन्दरी कन्याओंकी प्राप्तिका वर्णन
३७३-३७७
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त्रिशत्तम सर्ग
कार्तिककी पूर्णिमाको रात्रि में कुमार वसुदेव खसे सोये हुए थे कि एक अतिशय रूपवती कन्या उन्हें जगाकर एकान्तमें ले गयी और उन्हें अपना परिचय देने लगी । उसने कहा कि मैं प्रभावती हूँ और आपकी प्रिया वेगवतीका समाचार लायी हूँ । सोमश्रीने मुझे भेजा है। कुमार उसके साथ सोमश्रीके घर गये और अपनी चिर वियुक्त प्रियाओं से मिलकर प्रसन्न हुए । इसी प्रकरणमें उन्हें प्रभावतीकी प्राप्ति हुई
पृष्ठ
३७८-३८३
एकत्रिंशत्तम सर्ग
अनेक कन्याओंको विवाहते हुए कुमार वसुदेव अरिष्टपुर नगर आये और वहाँके राजा रुधिरकी पुत्री रोहिणीके स्वयंवर में वेष बदलकर पहुँचे । 'पणव' नामक बाजा बजानेवालोंकी श्रेणीमें जा बैठे। रोहिणीने वसुदेव के गले में वरमाला डाल दी। इस घटना से अनेक राजा कुपित होकर वसुदेवसे युद्ध करनेको तत्पर हुए। जरासन्ध बारी-बारीसे राजाओंकों वसुदेव के साथ लड़ाता था । अन्त में समुद्रविजयका भी अवसर आया । दोनों भाइयोंका युद्ध हुआ । वसुदेवने अपना कौशल दिखलाने के बाद एक पत्रसे युक्त बाण समुद्रविजयकी
३८४-३८८
विषय ओर छोड़ा जिसे ग्रहण कर समुद्रविजय हर्षित हुए। चिर वियुक्त भाईके मिलनसे सर्वत्र आनन्द छा गया
द्वात्रिंशत्तम सर्ग
वसुदेवके रोहिणी स्त्री से 'राम' नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । एक विद्याधरीकी प्रार्थना सुन कुमार वसुदेव, समुद्र विजयकी आज्ञा ले पुन: विजयार्ध पर्वतपर गये और वहाँ से अपनी समस्त स्त्रियोंको साथ ले
वापस
आ गये
३८९-३९९
पृष्ठ
४००-४०३
त्रयस्त्रिंशत्तम सर्ग
वसुदेव शस्त्रविद्याका उपदेश देते हुए सौर्यपुरमें रहने लगे । किसी समय वे कंस आदि शिष्यों के साथ राजगृह गये । वहाँ जरासन्धकी घोषणाको सुन वे सिंहपुर के स्वामी सिंहरथको जीवित पकड़ लाये । घोषणा के अनुसार जरासन्ध अपनी जीवद्यशा पुत्री वसुदेवको देने लगे पर उन्होंने स्वयं न लेकर कंसको दिलवा दी इस प्रकरण में कंसका परिचय ४०४-४०६ कंस, वसुदेवको मथुरा ले आया और बहन देवकीका उनके साथ विवाह कर दिया अतिमुक्तक मुनिके द्वारा 'देवकीका पुत्र तुम्हारे पतिको मारेगा' यह भविष्यवाणी सुन कंसकी स्त्री जीवद्यशा बहुत घबड़ायी । कंसने भी घबड़ाकर वसुदेवसे यह वचन ले लिया कि देवकीका प्रसव हमारे घर होगा । वसुदेवने अतिमुक्तक मुनिसे इसका कारण पूछा । उत्तर में मुनिराजने कंसका पूर्वभव सम्बन्धी वर्णन किया
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बलदेव सहित, देवकीके सातों पुत्रोंके पूर्व - भवों का वर्णन
४०६-४११
चतुस्त्रिशत्तम सर्ग
अतिमुक्तक मुनिके मुखसे यह बात सुनकर कि 'हमारे वंश में बाईसवें तीर्थंकर उत्पन्न होंगे' वसुदेव बहुत प्रसन्न हुए । उनकी प्रार्थना सुनकर अतिमुक्तक मुनिने नेमिनाथ
४०६
४११-४१८
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