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विषय
भी नीलशाके साथ बाहर गये, वहाँ नीलकण्ठ नामका विद्याधर मयूरका रूप धर नीलयशाको हर ले गया । वसुदेव जहाँ-तहाँ घूमते हुए गिरितट नगर में गये । वहाँ ब्राह्मणों का जमाव देख तथा सोमश्री कन्याकी यह प्रतिज्ञा कि 'जो मुझे वेदमें परास्त कर देगा उसीसे विवाह करूंगी' ज्ञातकर ब्रह्मदत्त उपाध्यायके पास वेद पढ़ने लगे । इसी प्रकरणमें आर्ष वेदकी उत्पत्तिका वर्णन अनार्ष वेदोंकी उत्पत्तिका वर्णन करते हुए सगर राजा, सुलसा और मधुपिंगलकी रोचक कथा तथा सगर राजाके द्वारा कृत्रिम सामुद्रिक शास्त्रका वर्णन, अन्त में वेदज्ञान में परास्त कर कुमार वसुदेवने सोमश्री के साथ विवाह किया
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३३१-३३४
चतुर्विंशतितम सर्ग
कुमार वसुदेवने तिलवस्तु नगर में जाकर नर-मांसभोजी सौदासको नष्ट किया । इसी प्रकरण में वृद्ध लोगोंने सौदासका वृत्तान्त सुनाया
कुमार वसुदेवका अचलग्रामके सेठकी पुत्री वनमाला के साथ विवाह हुआ । तथा वेदसामपुरके राजा कपिल मुनिको जीतकर उसकी कपिला नामक पुत्री के साथ विवाह सम्पन्न हुआ । विद्याधर लोकमें घूमनेके अनन्तर वेगवती और मदनवेगा आदिके साथ उनका संयोग हुआ
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३३४-३४३
३४४-३४५
३४५-३५०
पञ्चविंशतितम सर्ग
मदनवेगाके भाई दधिमुखने अपने पिताको बन्धनसे छुड़ाने के लिए वसुदेवसे प्रार्थना की । इसी सन्दर्भ में हस्तिनापुरके राजा कार्तवीर्य, जमदग्निके पुत्र परशुराम और सुभौम चक्रवर्तीका वर्णन ३५१-३५४ दधिमुखकी प्रार्थना सुन वसुदेवने युद्ध द्वारा त्रिशिखरको मारा और अपने श्वसुर को बन्धन मुक्त किया
३५४-३५६
विशतितम सर्ग
कुमार वसुदेवसे मदनवेगाके अनावृष्टि नामका
पुत्र हुआ। एक दिन सब विद्याधर अपनीअपनी स्त्रियोंके साथ विजयार्ध गिरिके सिद्धकूट जिनालय गये । कुमार वसुदेव भी मदनवेगाके साथ गये । वहाँ मदनवेगाने उन्हें विद्याधरोंकी विविध जातियोंका परिचय
२९
कराया
३५७-३५८
एक दिन मदनवेगा कारणवश कुमारसे कुपित हो भीतर चली गयी । इसी बीच में त्रिशिखर विद्याधरकी विधवा पत्नी शूर्पणखी मदनवेगाका रूप धरकर कुमारको छलसे हर ले गयी । शूर्पणख कुमारको नष्ट करनेके कार्य में मानसवेगको नियुक्त कर चली गयी । कुमार राजगृही नगरी में एक घासको गंजीपर गिरे । उधर जरासन्धके सेवकोंने पकड़कर तत्काल मारने के अभिप्राय से एक चर्म - निर्मित भाथड़ी में बन्द कर उन्हें पर्वतसे नीचे पटका परन्तु 'वेगवती' स्त्रीने उन्हें बीच में ही झेल लिया और नीचे उतारकर भाथड़ी से बाहर निकाला, दोनों का मिलन हुआ ३५८-३६० कुमार वसुदेवने नागपाशसे बद्ध बालचन्द्राको छुड़ाया जिससे उसे विद्या सिद्ध हो गयी और वह कुमारकी पत्नी बननेकी आशासे अपनी वह विद्या कुमारकी आज्ञासे वेगवतीको दे गयी
३६०-३६१
अष्टाविंशतितम सर्ग
वेगवतोसे रहित वसुदेव एक बार तापसोंके
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सप्तविंशतितम सर्ग
विद्युष्ट्र ने संजयन्त मुनिपर उपसर्ग किस कारण किया ? राजा श्रेणिकके इस प्रकार प्रश्न करनेपर गौतम गणधर संजयन्त केवलीका चरित पूर्वभवों के साथ वर्णन करने लगे । इसीके अन्तर्गत सुमित्रदत्त वणिक्के रत्न हड़पने वाले श्रीभूति पुरोहितकी कथाका समुल्लेख ३६२-३७२
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