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हरिवंशपुराणे विषय ___ पृष्ठ विषय
पृष्ठ संगीतके द्वारा गन्धर्वसेनाको परास्त कर उसे जाना और गन्धर्वसेना पुत्रीको विवाहके अर्थ विवाहा, इसी प्रकरणके अन्तर्गत संगीत लाना आदिका रोमांचकारी वर्णन ३०४-३१८ शास्त्रका विस्तृत निरूपण किया २८५-२९७
द्वाविंशतितम सर्ग विंशतितम सर्ग
चम्पापरीमें गन्धर्वसेनाके साथ वसुदेव रह राजा श्रेणिकके प्रश्नके उत्तरमें गौतम गणधर रहे थे कि इसी बीचमें फाल्गुनका अष्टाह्निका सम्यग्दर्शनको विशुद्ध करनेवाली विष्णुकुमार
पर्व आ गया। वसुदेव गन्धर्वसेनाके साथ मुनिकी कथा कहने लगे । उज्जयिनीका राजा
वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमाकी पूजाके लिए श्रीधर्मा नगरवासियोंको मनिवन्दनाके लिए
नगरके बाहर गये । बीच में नृत्य करनेवाली जाते देख मन्त्रियोंके साथ स्वयं गया।
एक मातंगकन्याकी ओर उनका आकर्षण मुनियोंका संघ उस समय ध्यानस्थ था, अतः बढ़ा परन्तु गन्धर्वसेनाकी प्रेरणासे सारथिने किसीने राजाको आशीर्वाद नहीं दिया । रथ आगे बढ़ा दिया। मन्दिरमें वसुदेवने बलि आदि मन्त्री मार्ग में मिले, एक मुनिको
वासुपूज्य भगवान्की पूजा और स्तुति की। शास्त्रार्थ के लिए छेड़ बैठे और हारकर लज्जित
घर वापस आनेपर गन्धर्वसेनाका प्रणय कोप हुए । रात्रिमें मुनियोंको मारने के लिए आये
शान्त किया
३१९-३२२ पर यक्षने कीलित कर दिया। यह देख
एक समय वसुदेव एकान्त स्थानमें बैठा राजाने मन्त्रियोंको देशसे निकाल दिया २९८
था, उसी समय एक वृद्ध विद्याधरीने आकर हस्तिनापुरके महापद्म चक्रवर्ती और उनके
उन्हें आशीर्वाद दिया और विद्याओंके निकाय पुत्र विष्णुकुमारकी दीक्षाका वर्णन । बलि
तथा विजयाकी दोनों श्रेणियोंकी नगरियोंका आदि मन्त्री हस्तिनापुर जाकर राजा पद्मके
नामोल्लेख कर सिंहदंष्ट्र और नीलांजनाकी पास रहने लगे
२९८-२९९
पुत्री नीलयशाको विवाहनेकी बात कही। किसी समय अकम्पनाचार्य आदि पूर्वोक्त
वसुदेवने 'तथास्तु' कहार स्वीकृति दी ३२२-३२७ मुनियोंका संघ हस्तिनापुर पहुँचा तो बलि
एक बार एक वेतालकन्या रात्रिके समय वसुआदि मन्त्रियोंने राजा पद्मसे ७ दिन तकका
देवको खींचकर श्मशान ले गयी, वहाँ उसने राज्य लेकर मुनियोंपर उपसर्ग किया और अपना असली रूप दिखलाकर पूर्वोक्त नीलविष्णुकुमार मुनिने अपनी विक्रियासे बलिका
यशाके साथ उनका पाणिग्रहण कराया । तददमन कर मुनिसंघकी रक्षा की २९९-३०३
नन्तर उन विद्याधरियोंके साथ वसुदेव ह्रीमन्तपर गये । पश्चात् हिरण्यवतीकी
सहायतासे असित पर्वत नामक नगर गये । एकविंशतितम सर्ग
वहाँके राजा सिंहदंष्ट्रने अपने अन्तःपुरके साथ कुमार वसुदेवके पूछनेपर चारुदत्तने आत्म- वसुदेवको प्रेमपूर्ण दृष्टिसे देखा । वसुदेव कथा सुनायी। जिसके अन्तर्गत चारुदत्तकी नीलयशाके साथ सानन्द रहने लगे ३२७-३३० उत्पत्ति, विवाह, वेश्याव्यसनकी आसक्ति, वेश्याकी माताके द्वारा छलसे अलग करना,
त्रयोविंशतितम सर्ग अपने घर वापस आना, माता तथा स्त्रोसे कुमार वसुदेव नीलयशाके साथ सुखसे रहते मिलना, व्यापारके लिए बाहर जाना, मार्गमें
थे । वर्षा ऋतु आयी और उसके बाद शरद् अनेक कष्ट भोगना, अन्तमें मनिराजके दर्शन
ऋतुने अपनी छटा दिखलायी। विद्याधर कर उनके पुत्रोंकी सहायतासे विजयापर दम्पती क्रीड़ाके लिए बाहर निकले । वसुदेव
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