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गाथा ५
प्रश्न ५- सम्यग्दृष्टिके भी घट पटादि अनेक पदार्थोके सम्बधमे सशय विपर्ययज्ञान हो जाता है, फिर तो वह ज्ञान मिथ्याज्ञान कहा जाना चाहिये ? भर टा
__उत्तर- सम्यग्दृष्टिके द्रव्य, गुण, पर्यायका यथार्थ विवेक है। उसमे संशयादिक नही है । अतः प्रात्मसाधक ज्ञानमे बाधा नही आती है, अतः सम्यग्ज्ञान है । हाँ लौकिक अपेक्षा सशय विपर्यय ज्ञान है, परन्तु इससे मोक्षमार्गमे कोई बाधा नही आती।
प्रश्न ६- मनःपर्ययज्ञान भी कोई-कोई कुज्ञान क्यो नही होता ?
उत्तर- मनःपर्ययज्ञान ऋद्धिधारी भावलिङ्गी साधुके ही होता है । अतः वह कुज्ञान - हो ही नही सकता।
प्रश्न ७-आत्मा तो एक द्रव्य है, उसके ये अनेक ज्ञानोपयोग क्यो हो गये ?
उत्तर- प्रात्मा तो निश्चयसे एक स्वभाव है, जिसकी स्वाभाविक पर्याय केवलज्ञान ही होना चाहिये, परन्तु अनादिकालसे कर्मबन्ध करि सहित होनेसे मतिज्ञानावरणादिके क्षयोपशमके अनुसार ज्ञान प्रकट होते है । अतः ये इतने प्रकारसे ज्ञानोपयोग हो गये । केवलज्ञान को छोडकर शेष ७ ज्ञानोमे भी असख्यात असंख्यात भेद हैं।
प्रश्न -मतिज्ञानका क्या स्वरूप है ?
उत्तर- मविज्ञानावरण एव वीर्यान्तरायके क्षयोपशमसे तथा इन्द्रिय, मनके निमित्तसे वस्तुका एकदेश ज्ञान होना मतिज्ञान है ।।
प्रश्न :- तब तो यह मतिज्ञान बहुत पराधीन हो गया?
उत्तर-उक्त निमित्तोके रहते हुये भी मतिज्ञान ज्ञानस्वभावके उपादानसे ही प्रकट होता है, अन्य द्रव्योसे नही, अतः स्वाधीन ही है।
प्रश्न १०-मतिज्ञानका प्रसिद्ध अपर नाम क्या है ? उत्तर- मतिज्ञानका प्रसिद्ध अपर नाम आभिनिबोधिक ज्ञान है । प्रश्न ११ -आभिनिबोधिक ज्ञानका शब्दार्थ क्या है ?
उत्तर- अभि याने अभिमुख और नि याने नियमित अर्थक अवबोधको प्राभिनिबोधिक ज्ञान कहते है।
प्रश्न १२-अभिमुख किसे कहते है ? उत्तर-स्थूल, वर्तमान और व्यवधान रहित पदार्थोंको अभिमुख कहते है । प्रश्न १३-नियमित किसे कहते है ? उत्तर-इन्द्रिय और मनके नियत विषयोको नियमित पदार्थ कहते है।
प्रश्न १४-किस-किस इन्द्रियका क्या-क्या विषय नियत है ? . उत्तर- स्पर्शनेन्द्रियका स्पर्श, रसनेन्द्रियका रस, घ्राणेन्द्रियका गन्ध, चक्षुरिन्द्रियका