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द्रव्यसग्रह--प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न १६-क्षयोपशम किसे कहते है ?
उत्तर-- उदयमे आने वाले सर्वघाती स्पर्द्धकोके उदयाभावी क्षय और आगामी उदयमे आने वाले सर्वघाती स्पर्द्धकोके उपशम तथा देशघाती स्पर्द्धकोके उदयको क्षयोपशम कहते है।
प्रश्न १७--(दर्शनोपयोगके पाठसे हमे किस कर्तव्यकी प्रेरणा लेनी चाहिये ?
उत्तर-- दर्शनोपयोगका जो विषय है उसे हम ज्ञानोपयोगसे ज्ञात करे और उसके ज्ञानोपयोगके स्थिर रहनेका यत्न करें। इस उपायसे हमे सम्यक्त्वकी प्राप्ति होगी) अब उपयोगाधिकारमे वणित किये गये दो प्रकारके उपयोगमे से दर्शनोपयोगका वर्णन करके ज्ञानोपयोगका वर्णन करते है
णाण अढवियप मदिसुद प्रोही प्रणाणणाणाणि ।
मणपज्जय केवलमवि पच्चक्खपरोक्वभेय च ॥५॥ अन्वय-- रणाण अवियप्प अणाणणाणाणि मदिसुदमोही, मणपज्जय अवि केवल च पच्चक्खपरोक्खभेय ।
अर्थ-ज्ञानोपयोग ८ प्रकारका है-कुज्ञान और ज्ञानस्वरूप, मति, श्रुत, अवधि ये ३ और मन पर्यय व केवलज्ञान । ज्ञानोपयोग प्रत्यक्ष, परोक्षके भेदसे दो प्रकारका भी है ।
प्रश्न १-- दो प्रकारसे ज्ञानोपयोगके वर्णनमे कुछ सामञ्जस्य है क्या ?
उ त्तर-- ज्ञानोपयोगके दो भेद है--१ प्रत्यक्ष, २ परोक्ष । इनमे प्रत्यक्ष २ प्रकारका है १.विफलप्रत्यक्ष, २ सकलप्रत्यक्ष । विकलप्रत्यक्ष मन पर्ययज्ञान व अवधिज्ञान हैं । परोक्षज्ञान मति और श्रुतज्ञान हैं। TATO ARE
प्रश्न २- मति, श्रुत, अवधि ये तीन कुज्ञानरूप क्यो हो जाते हैं ? उत्तर-- मिथ्यात्वके उदयके सम्बन्धसे ये तीनो ज्ञान कुज्ञान कहलाते है।
प्रश्न ३-- क्या मिथ्यात्वके उदयका प्रभाव ज्ञानपर भी पडता है ? MH (उत्तर- यद्यपि मिथ्यात्वके उदयसे श्रद्धागुणका ही विपरीत परिणमन होता है तथापि विपरीत श्रद्धा वाले जीवके द्रव्य-वस्तुके ज्ञानमे यथार्थता व अनुभव न होनेसे ये ज्ञान भी कुज्ञान कहलाते है।
प्रश्न ४-- मिथ्याष्टिके भी तो बडे-बडे आविष्कारो तकमे सच्चा ज्ञान पाया जाता है तब सारी वस्तुवोमे मिथ्याज्ञान कैसे कहते ?
उत्तर-- जिन्हे शुद्धात्मादितत्त्वके विषयमे विपरीत अभिप्राय रहित यथार्थ ज्ञान नही है --- उनके ज्ञानको मिथ्याज्ञान ही कहा गया है । क्योकि अात्महितके साधक ज्ञानको ही सम्यग्ज्ञान
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