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गाथा ४
उत्तर- दर्शन तो आत्माकी शक्ति है. और दर्शन गुणके विकासका नाम दर्शनोपयोग.. है । दर्शनशक्ति तो नित्य है और उसका परिणमन जो दर्शनोपयोग है वह उत्पाद व्यय) स्वरूप है।
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.. - प्रश्न ६-- सम्यग्दर्शन और दर्शनोपयोगमें क्या अन्तर है ?
" उत्तर- सम्यग्दर्शन तो श्रद्धा गुणकी निर्मल पर्याय है और दर्शनोपयोग दर्शन गुणकी पर्याय है।
प्रश्न १०- दर्शन और श्रद्धामे क्या अन्तर है ?
उत्तर- दर्शन तो अन्तर्मुखचित्प्रतिभासका नाम है और श्रद्धा उसे कहते है जिसके होने पर प्रतीति, विश्वास अथवा पर्यायकी समीचीनता होने लगे।
प्रश्न ११-- दर्शनोपयोगका सम्यग्दर्शनके साथ क्या कुछ भी सम्बन्ध नही है ?
उत्तर- दर्शनोपयोगका जो विषय है वह सामान्य-आत्मा है । यदि उस सामान्य आत्मामे अह अर्थात् निजद्रव्यकी प्रतीति करे तो सम्यग्दर्शन होता है। विषयमें आया हुआ द्रव्य दोनोका विषय है, इतना मेल तो घटित होता है, किन्तु दोनो पर्यायमे-पृथक्-पृथक् गुणो के परिणमन है ,प्रतः स्वलक्षण की अपेक्षा सम्बध नही है ।
प्रश्न- १२ मिथ्यादृष्टिके दर्शनोपयोग क्या मिथ्या होता है ?
उत्तर- दर्शनोपयोग न मिथ्या होता है और न सम्यक् होता है । हा, यह अवश्य है कि मिथ्यादृष्टि दर्शनोपयोगके विषयका अनुभव नही करता, परन्तु सम्यग्दृष्टि दर्शनोपयोगके विपयकी प्रतीति करता है। यथार्थतः ज्ञान भी न सम्यक् है और न मिथ्या है । (ज्ञान मिथ्यात्व व अनतानुबन्धीके उदयमे उपचारसे मिथ्या कहलाता है। परन्तु दर्शनोपयोगमे यह उपचार भी नहीं है, क्योकि दर्शनोपयोग निराकार है।)
प्रश्न १३- अवधिदर्शनोपयोग किसे कहते है ?
उत्तर-- अवधिज्ञानसे पहिले होने वाले अन्तर्मुख चित्प्रतिभासको अवधिदर्शनोपयोग कहते है।
प्रश्न १४-- केवलदर्शनोपयोग किसे कहते है ? उत्तर-- केवलज्ञानके साथ-साथ होने वाले अन्तर्मुख चित्प्रतिभासको केवलदर्शन कहते
प्रश्न १५-- ये दर्शनोपयोग किस निमित्तको पाकर प्रकट होते है ?
उत्तर-- चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण व अवधिदर्शनावरणके क्षयोपशमसे तो) क्रमशः चक्षुर्दर्शन, अचक्षुर्दर्शन व अवधिदर्शन प्रकट होते है और केवलदर्शनावरणके क्षयसे) केवलदर्शन प्रकट होता है।