Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
View full book text
________________
गाथा में विशेष समजूत.
(१३)
परंतु इस चारनिक्षेपके विषयमें, पाठक वर्गको, प्रथम इतना ख्याल अवश्यही करके हृदय में धारण कर लेना चाहिये कि, जिससे आगे आगे समजनेको बहुत ही सुगमता हो जावें, सो ख्याल में कर लेने की बात यह है कि
॥ जे जे “ भाव स्वरूपकी " वस्तुओं, उपादेय स्वरूपकी ( अर्थात् प्रीति करनेके, अथवा परम प्रीति करनेके, स्वरूपकी ) होती है, उनके चारो ही निक्षेप, उपादेय स्वरूपके ही रहेंगे । इसमें किंचित् मात्रका भी फरक न समजेंगे. ॥ १ ॥
और जे जे “ भाव स्वरूपकी " वस्तुओं, ज्ञेय स्वरूपकी ( अर्थात् ज्ञानही प्राप्त करने के स्वरूपकी ) होंगी, उस वस्तुके, चारो ही निक्षेप, ज्ञान ही प्राप्त करानेमें कारणरूप रहेंगे । इसमें भी किंचित् मात्रका फरक न समजेंगे. ॥ २ ॥
और जे जे " भाव स्वरूपकी " वस्तुओं, हेय स्वरूपकी ( अर्थात् दिलगीरी उत्पन्न कराने के स्वरूपकी ) होंगी, उनके चारों निक्षेप भी, दीलगीरी ही उत्पन्न करानेमें, कारणरूप रहेंगे. । इसमें से प्रिंट रामसार सत्र र समजेनेट ए३१
परंतु इसमें भी विशेष ख्याल करनेका यह है कि जिस समुदायने, अथवा एकाद पुरुषने, जिस भाव वस्तुको उपादेय के स्वरूपसें, मानी है, उनको ही वह " भाव स्वरूप वस्तुके " चारों निक्षेप, उपादेय स्वरूपके रहेंगे. । परंतु अन्यजनोंको, उपादेय स्वरूपके न रहेंगे. । जैसे कि - " तीर्थकररूप भावबस्तुका चारों निक्षेपको, जैन लोक मान देते है, वैसें, अन्यमतवाले नही
""
देते है ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org