Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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ढूंढनीजीका-३ द्रव्य मिक्षेप.. हुवा, मात्र-दो शब्दोंसे ही, उन्होका ध्यानको खेचताहुं कि-जिस महा पुरुषोंका, नाम मात्रका उच्चारण, करनेसे ही-वंदन, नमन, करके-हमारा पापका प्रलय, करनेको-चाहते होंगे, उनोंकी-विशेष बोधदायक अलौकिक, भव्य मूर्तियांका-दर्शन, नमन, पूजनसें भी, हमारा-कठोर हृदयको, दावत-किये बिना, .. ___ और आत्माको सभ्यत धर्ममें स्थापित किये बिना, हमलोक विशेष धर्मकी प्राप्ति, तीन कालमें भी-न मिला सकेंगे । यह हमारा कथन चारो तरफकी दृष्टिसें, हमारा सामान्य मात्रका भी लेखसें देखने वाले सज्जन पुरुषोंको, योग्य ही-मालूम हो जायगा । ___और ते सज्जन पुरुषो, हमारा-स्वछ हृदयका लेखको, सफल करते हुये, तीर्थंकरोंकी-भाक्तभावका, लाभको-अवश्यमेव, उठायेंगे ? । और हमारा अनुमोदनका, लाभकी आशाको, सफल करेंगे । इत्यलं विस्तरेण ॥
॥ इति ढूंढक भक्त आश्रित संवाद पूर्वक त्रणे पार्वतीका दूसरा स्थापना निक्षेपका स्वरूप ॥
अब ढूंढक भक्त आश्रित-त्रणें पार्वतीजीका, तिसरा-द्रव्य निक्षेपका, स्वरूप लिखते है ।।
मूर्तिपूजक-हे भाइ ढूंढक, देखकि, शिव पार्वतीजीका-द्रव्य निक्षेप, यहथा कि-भाव निक्षेपका विषयभूत योवनत्वकी, पूर्व अवस्थामें, अथवा-अपर अवस्थामें, उनके-गुणोंका वर्णन, पंडितोंको संतुष्ट द्रव्यका-अर्पण करके भी, सो शिवका भक्त-श्रवण करता हुवा, और अपना-उपादेय वस्तुके संबंधपणे, मानता हुवा, अपना लाभ, या-हानिको भी, मानता रहा था।
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