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ढूंढनी पार्वतीजीकी - मूर्त्तिका वर्णन
सर्व वस्तुओंका - निरर्थक, और उपयोग बिना के, ठहरायेंथे परंतु हम ने हमारा लेखमें- सिद्धांत का वचनके अनुसारसे - अनेक प्रकारकी युक्तिओंके साथ-चारो निक्षेपकी सार्थकता, और उपयोगीपणा क रके ही दिखलाइ दिया है, तोभी इहांपर किंचित् उपयोग करानेके वास्ते - सूचना मात्र, लिख दिखाता हुं- अब विचार कीजीयेकि-पहादेवजीकी पार्वतीकी अपेक्षासें - इसी ढूंढनी पार्वतीजी का नाम है सो, तुमेरा ही मंतव्य मुजब नाम निक्षेप ही, ठहर चूका है, और निरर्थकभी तुमने माना है, तब तो ढूंढनी पार्वतीजीके नामसें दूर देश में बैठकर किसीने - गालीयांभी दीइ तो तुमको उदासी भाव होनेका, और उनके तरफ द्वेषभाव करनेका, अथवा उनको निवारण करनेका, कुछभी प्रयोजन न रहेगा। क्योंकि - निरर्थरूप और उपयोग विनाकी वस्तुका चाहे कोई कुछभी करें तोभी, उनकाशोक, संताप, कोईभी करता नहीं है । यह तो ढूंढनीजीका १ नाम निक्षेप हुवा || अब ढूंढनीजीका ३ द्रव्य निक्षेप, और ४ भाव निक्षेपमें विशेष हम लिख चूके है मात्र इहांपर - २ स्थापना निक्षेपमें ही - सूचना रूपे लिखके दिखाबते है । कारण यह है कि - ढूंढनीजीने स्थापना निक्षेपको ही निरर्थ, और उपयोग विनाका, ठहरानेके वास्ते ही विशेष प्रयत्न किया है । और यह जो छबी है सो, ढूंढनीजीका स्थापना निक्षेपका, विषयके स्वरूपकी ही है। अब इइमें देखीये कि कोई बदमास पुरुष - काम चेष्टारूपका दिखाव करके, ओर ढूंढनीजीकी - छबी के साथमें, खडा होके, और दूसरी -छबीका (अर्थात् मूर्त्तिका) उतारा करवायके, जर्गे जगें पर वे अदबी करता फिरेगा, तब- हे ढूंढक भाईयों-तुमको, और हमको दलिगीरी, उत्पन्न होगी या नहीं ? कदाच तुम हठ पकड करके ऐसा कहभी देवोंगे कि इसमें दीलगीरी करनेका, क्या प्रयोजन है ?
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