Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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(६) जिनप्रतिमा स्थापन र स्तवने. पजिनप्रति प्रत्येकि धूप ऊषेवइ. द्रौपदी सूरयाभदेवा | ज्ञाता रायपसेमाहि, ए अक्षर जो एहवारे । कु. । १४ ॥ ‘नमुथ्थुणं' कही शिव सुखमागे, नृत्य करी जिम आगि । समकित दृष्टिजिन गुणरागें, कां तुज कुमति न भागेरे । कु. । १५ ॥ सूरयाभमुर नाटिक करतां, वचन विराधक न थयो। " अणुजाणह भयवं" इणि अक्षर, आणाराधक सदघोरे । कु. । १६|| जलयर' थलयर' फूलनां पगरण, जानु प्रमाण समारे। जोयणलगे ए प्रगट अक्षर, समवायांग ममाररे । कु. । १७ । पडिले. हन करतां परमादि, कह्या छकाय विराधक । उत्तराध्यधनना अध्ययन छवीशमें, कुण दया धरमनो साधक । कु.। १८ ॥ नदो नाहला ऊतरी चालो,दया किहां नव राखे । थे दयानो मर्म न जाणो, रहस्यो समकित पाखेरे । कु. ! १९ ॥ साधु अमें साधवी बलीए, घडी छमाहिं न फिरवू । सुषिम वरषा तिहां हो ए, भगवती सूत्र सद्दहव॒रे । कु. । २० ॥ परिपाटी ने धर्म देषाडे, ते कह्या धर्म आराधक । वसै वरस पहिलो धर्मविछेदें, ते जिनवचन विराधक । कु. । २१॥ अत्तागम अनंतरागम वली, परंपरागम जाणो। एतीने मारगवली लोपें, ते तो मूढ अजाणरे। कु. । २२।। तुंगीया नगरीना श्रावक दाता, पुण्यवंत ने सौभागी। घरि घरिवें राधो विन मागे, ए कुमती किहांथी लागीरे कू.।२३।। योग उपधान विना श्रुत भणतां, ए कुबुद्धि तिहां आई । तप जप संयम किरिया छोडें, पूर्व कमाई गमाईरे। कु. । २४ ॥ चउवीश दंडक भगवती भाष्यां, पनर दंडक जिन पू । शुभ दृष्टि शुभ भाविं शुभ फल, देषी कुमत मत धूजैरें। कु. ।२५।। बेंद्री तेंद्री चउरेंद्रीय,पांच थावर नरक निवासी।
१ नेनांजन १भाग. पृ. ११० से ११४ तक द्रौपदीजीका विचार है ।।
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