Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni

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Page 436
________________ जिनमतिमाके निंदाकों को शिक्षा. ॥ अथ ढूंढक शिक्षा लघुस्तवन || मत निंदो ढूंढक जिन मूरति । मत० ए टेक ॥ जिन मूरति निंदा करनेसें । नहीं लेखे होय तुम विरति । म० || १ || कष्ट करो पिण ते सुकृतमें। मुको जलती तुम बति । म० ।। २ ।। प्रगट पाठका लोप करनको | मत करो तुम काठी छाती । म०॥३॥ जिनके बदले वीर श्रावकको । पूजावो न भूतादिक मूरति म ० ||४|| वरकी खोट दिखाके द्रौपदीको । पूजावो न कामकी मूरति |म० ||५|| सुरगण इंद नींदे पूजी । ते निंदो कहीने अविरति । म० ।। ६ ।। मित्रकी मूरतिसें प्रेम जगावो । जिन मूरतिमें ही मूढमति |म० ||७|| स्त्रीकी मूरतिसें काम जगावो । जिन मूरतिमें नहीं भक्तिमति |म० ||८|| घोडा लाठीका नरम वचनसें । घोडा कहीने हटावे जति | ० ||९|| पहाड पाषाण जिन मूरतिको केहतां। लाज न तुमको भ्रष्ट मति १० जिनके नामसें रोटी खावो । तीनकी निंद करो पापमति |०||११|| भूतादिक पूजावोभावे । उहां न बतावो तुम हिंसा रति । म०१२ | हिंसा दयाका भेद जाने बिन । मत बनो तुम आतमघाति । म० | १३ | तीर्थकरकी निंदा करतां । नष्ट होय निवेंहि विभूति | म० || १४ || मुनि श्रावकका भेद न समजो भ्रष्ट करो गृहीकी विरति |म० ||१५|| कही हित शिक्षा यह छोटी । नहीं ईपी की करी है मति | ० || १६ || अमर कहें निंदा जिनवरकी । तीक्ष्ण धाराकी काति । म० ।। १७ । ॥ इति ढूंढक शिक्षा लघु स्तवनं समाप्तं ।। ( ४२ ) ॥ इति मुनिराज श्री अमरविजय कृता श्री जिनप्रतिमा मंडन स्तवन संग्रहावली समाप्ता ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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