Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni

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Page 423
________________ तीर्थंकरों का दर्शन. (२९) स्थामें भी, साक्षात् स्वरूपसें भगवान् नहीं है तो भी, हम भक्तजन है सो - भावदृष्टि से, भगवान्‌को ही साक्षात्पणे भावनासें कर लेते है | इसवास्ते आगे कहते है कि - दिठाविणुं पणि देखिये, तात्पर्य - हे भगवन् न तो हम तुमको - ऋषभादिक - नामके अक्षरों में, साक्षात्पणे देखते है | और नतो तेरेको - मूर्त्ति मात्रमें, साक्षात् पणे देखते है | और नतो तेरेको पूर्व अपर अवस्थाका शरीरमें भी, साक्षात्पणे देखते है | और नतो तेरा गुणग्रामकी स्तुतिओं में भी, तेरेको साक्षात्पणे देखते है । तोभी हम तेरेको हमारी भावदृष्टिसें- सर्व जगपर ही देख रहै है । I और हे भगवन् ! हम अनादिकालकें अज्ञानरूपी अघोर निंद्रा में सुते है, तोभी तूं अपना अपूर्व ज्ञानका बोध देके, हमको जगावता है | इसी वास्ते महात्माने अपना उद्गारमें कहा है कि - सुतपिण जगवें, अर्थात् एसी अंघोर निद्रा सेंभी, तूं हमको जगावता है । 1 C इतनाही मात्र नहीं परंतु जब हम तेरी भक्ति में - लीन होजायगें, तब जो हमारी इंद्रियोंमें- इंद्रियपणे की बुद्धि हो रही है, सोभी तेरी भक्ति के वससे छूट जायगी, हसीही वास्ते महात्माने कहा है किइंद्रिय बुद्धि त्यजवें, जब ऐसें इंद्रिय में से इंद्रिय बुद्धि हमारी छुट जायगी, तब हमारी जो पराधीनता है सोभी मिट जायगी । इसी वास्ते कहा है कि - पराधीनता मिटगए ए, जब एसी पराधीनता मिटजायगी - तब जो हमको तेरा स्वरूपमें, और हमारा स्वरूपमें भेदभाव मालूम होता है, सोभी दूर हो जायगा । इसीवास्ते महामाने कहा है कि - भेदबुद्धि गई दृर, जब ऐसें - भेदबुद्धि, न रहेगी तबही है भगवन्- तेरा साक्षात स्वरूपको हम नमस्कार करेगे । परंतु पूर्वमें दिखाई हुई अवस्थोमें, तेरेको हम साक्षात्पणे - नमस्का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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