Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni

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Page 425
________________ तीर्थकरादिकनिंदक, माधव ढूंढक. (३१) ॥ श्री मज्जैन धर्मोपदेष्टा माधव मुनि विरचित ॥ स्तवन तरंगिणी द्वितीय तरंग. साधुमार्गी जैन उद्योतनी सभा, मानपाडा आगराने ज्ञान लाभार्थ मुद्रित कराया ॥ अथ स्थान सुमति संवाद पद । राग रसियाकीमें ॥ अजब गजबकी बात कुगुरु मिल, कैसो वेश बनायोरी ॥ टेर। . मानो पेत शेत पट ओढन, जिन मुनिको फरमायोरी. अ० ॥ १ ॥ कल्पसूत्र उत्तराध्ययनमें, प्रगटपणे दरसायोरी. अ॥२॥ तो क्यों पीत वसन केसरिया, कुगुरुने मन भायोरी. अ० ॥३॥ भिष्ट भये निर्मल चारितसे, तासे पीत मुहायोरी. अ०॥४॥ नही वीर शासन वरती हम,यों इन प्रगट जतायोरी अ० ॥ ५ ॥ तो भी मूढ मति नहीं समजे, ताको कहा उपायोरी. अ० ॥ ६ ॥ रजोहरणको दंड अभेहित, मुनि पटमांहि लुकायोरी. अ० ॥ ७ ॥ तो क्यों आकरणांत दंड अति, दीरघ करमें सह्योरी. अ० ॥ ८ ॥ त्रिविध दंड आतम दंडानो, ताते दंड रखायोरी. अ० ॥ ९ ॥ मुहणंतग मुखपै धारे विन, अवश प्राणि वध थायोस अ० ॥१०॥ तो क्यों करमें करपति धारी, हिंसा धरम चलायोरी. १० ॥१॥ १ जैन धर्मका-मुख किधर है, इतने मात्रकी तो-खबर भी नहीं है, तो भी जैन धर्मके-उपदेष्टा बन बैठे है ? ॥ २ सम्यक शल्योद्धार, और यह हमारा ग्रंथसें भी थोडासा विचार करो? तुमेरेमें मूढता कितनी व्याप्त हो गई है ? ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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