Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni

View full book text
Previous | Next

Page 406
________________ मिथ्यात्व खंडन-६ स्वाध्यायः देव वंदननी टीकाकारी, हरिभद्र सूरिराया । च्यार धुइ करी देवी दिजें, वृद्ध वचन सुखदायारे । भवि । १५ ॥ वैयावच शांति स. माधिना करता, सुर समकित सुखकारी । प्रगट पाठ टीका निर धात्यों, हरिभद्र सूरि गणधारीरे । भवि । १६ ॥ वारे अधिकार चैत्य वंदननो, न क्यूं कहो हवें तेह । टीकाकार थुइ कही छे, सुर सम्यक्त्व गुण गेहरे । भवि । १७॥ खेत्र देव शय्यातरादिक, का. उसग कह्यो हरिभद्रे । नियुक्तिमें प्रगट पाठ ए, देखो करीमन भरे । भवि। १८ ॥ श्रावक सूत्र कह्यो वंदे तूं, पूरवधर मुनिराय । बोध समाधि कारण बांछे, सुर समकित सुखदायरे । भवि । १९ ॥ वै. शाला नगरीनो विनाशक, चैत्य थुभनो घाती । कुलबालुओ गुरुनों द्रोही, सातमी नरक संघातीरे । भवि । २० । इत्यादिक अधिकार घणेरा, निरपक्षी थई देखो । दृष्टि रागनें. दुर उवेखी, सुख कारण मुविवेकरे । भवि । २१ ॥ पंडितराय शिरोमाणि कहिये, अन्नविजय गुरुराय। जसविजय गुरु सुपसाये, परमानंद सुखदायरें । भवि।२२।। इति मिथ्यात्व तिमिर निवारण स्वाध्याय ५ मी संपूर्ण. .. ॥ श्री संपति राजाका ६ स्तवन । राग आशावरी । धन धम समति साचो राजा, जेणे कीधा उत्तम कामरे । सवालाख प्रासाद करावी, कलियुग राख्यु नाम रे ॥ धन. १ वीर संवत्सर संवत् बीने, तेरोत्तर रविवार रे। . · महाशुदि आठमी बिंब भरावी, सफल कियो आवतार रे । धन. २ श्रीपद्म प्रभु मूरती थापी, सकल तीरथ शणगार रे । .... कलियुग कल्प तरु ए प्रगटयो, वंछित फल दातार रे॥ धन. ३ उपासरा वे हजार कराध्या, दानशाला शय सात रे॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448