Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni

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Page 412
________________ ( १८ ) प्रतिमा मंडन रास. "जिन प्रतिमा जिन अंतरी, जाणे जे जिनथी प्रति कूलके । जिन प्रतिमा जिन सारखी, मानीजे ए समकित मूलके । कु. ||७|| जिन प्रतिमा उपरि जिके, साची सद्दहना धारंत के । ॥ ८ ॥ ते नरनारी निस्तरे, चउगति भवनो आणे अंतके । कु. आज इण दूसम आरे, मति श्रुत छे तेही पण हीनके । तो कम सूत्र उथापीये, इम जाणो तुमे चतुर प्रवीणके । कु. ॥ ९ ॥ मन पर्यव केवल अवधि, ज्ञान गयां तीन विछेदके । 'तो जिम सूत्रे भाषियो, तिम किजें मन धरिय उमेदके | कु. ||१०|| जे निज मन मान्यों करे, टीका वृत्ति न माने जेह के । ते मूरख मंद बुद्धिया, परमार्थ किम पायें तेह के । कु. ॥ ११ ॥ ए आगम मानुं अम्हे, एह न मानुं एह कहे हके । तेहने पुछो एहवो ज्ञान किसो प्रगटयो तुम्हे देह के | कु. ॥१२॥ दश अठावीसमें, उत्तराध्यन कही छे जोय के । आणा रुचि वीतरागनी, आगन्या ते परमाणाके होय के । कु. ।। १३ ।। तप संयम दानादि सहूं, आण सहित फलें ततकालके । धर्म सहुँ विन आगन्या, कण विन जाणे घास पलालके | कु.।। १४ ।। तो साची जिन आगन्या, जो घरे प्रतिमामुं रागके । सूत्रे जिन प्रतिमा कही, जेह न माने तेह अभाग के । कु. ॥। १५ ।। दारु प्रमुख दश थापना, बोली किरियानें अधिकारके | अकिरिया विण पण थापना, इनही अनुयोग दुवारके | कु. ||१६|| १ जो तीर्थंकर की प्रतिमासें अंतर करनेवाले है सो तीर्थंकरोंसें ही दूर रहनेवाले है ॥ - २ आज्ञाविनाका दान दयादिक धर्म है सो, धान्य विनाका घास, पलाल; जैसा है ॥ ३ काष्टादिक दश प्रकारकी स्थापना, तीर्थकरों की भी करनेकी कही है ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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