Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni

View full book text
Previous | Next

Page 414
________________ (२०) प्रतिमा मंडन संसं. जीवाभिगमें जोइज्यो, विजय देवतणे अधिकारके। सिद्धायतन आवी करी, पैसे पूरवतणे दुवारके । कु. ॥ २४ ।। देवछंदे आवे तिहां, जिन प्रतिमा देखी धरे रागके । करे प्रणाम नमाय तनु,भगति युगति निज भाव अथागके। कु.॥२९॥ लोमहथ्थ परमारजे, सुरभि गंधोदक करें पखालके । अंग लुहें अंगलुहणे, चंदन पूज करें सुविशालके । कु. ॥२६ ।। फूल चढावे प्रभुभणी, उखेवें कृष्णागर धूप के। शक्र स्तव आगल कहें, कवण हेतु ते कहो सरूपके । कु.॥२७ ।। ठाणा अंगे भाषियो, चौथे ठाणे एह विचारके । नंदीसर जिन शास्वता, वंदे सुरवर असुर कुमारके । कु.॥ २८ ॥ पूजा प्रतिमा स्थापना, जंबूढीप पन्नती माहिके । बीजे अध्ययने अछे, सत्तम आलावें उछाहके । कु. ॥२९॥ पंचम अंगे भाषियो, जिन दाढा पूजे चमरेंद्रके। तेह टाले आशातना, विषय न सेवे ते असुरेंद्रके । कु. ॥३०॥ क्यां तेतो पुदगल हाडना, देहावयव विवर्जित जाणके । 'अधर्म अर्थ वली कामन, कहै अर्थ कहो सुजाणके । कु.॥ ३१ ॥ . जंघा विद्या चारणा, तप शील लबधितणा भंडारके । एक डिगे मानुषोत्तरे, चैत्य जुहारे अणगारके । कु. ॥ ३२ ॥ बीजे डिगे नंदीसरे, तिहां वली चैत्य जुहारण जायके । तीजे डिगे आवे इहां, इहां ना पण प्रणमे जिनरायके । कु.॥ ३३ ॥ भगवती अंगे इम कह्यो, गोयम आगे श्री महावरिके । सदहणा मन आणीने, पूजो जिनवर गुण गंभीरके । कु. ॥ ३४ ॥ १ धन पुत्रादिकके वास्ते पूजा करनी अधर्म कही है, सोही ढूंढनी करानेको तत्पर दुई है ॥ २ देखो नेत्रांजन प्रथम भाग पृष्ट. ११७ से १२१ तक ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448