Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
________________
जिनमतिमा स्थापन-३स्तवन. (७) जे जिन किंवन दरसन करें,ते दंडक नवमां जासीरें। कु. । २६ ॥ व्यंतर ज्योतिषने वैमानिक, तीर्यच मनुष्य ए जापी । भुवनपतिना दश ए दंडक,इहां जिनपूज गवाणीरे । कु ।२७।। श्रीजिन बिंब सेव्यां सुखसंपति, इंद्रादिक पदरुडां। वंदन पूजन नाटिक करतां, पामे शिव सुख उडारे । कु.२८ ॥ कानो मात्र एक पद उथा, ते कह्या अनंत संसारी । जेतो आखा खंधजलोपें, तिहारी गति छे भारीरे । कु, । २९॥ कूवा आवाढानां पाणी पीठं,कहें अम्हे दया अधिकारी। ए एकवीश पाणीमाहि कहां, तो बहुल संसारीरे । कु.॥३०॥ श्री महावीरना गणधर बोलें,प्रतिमा पूज्यां फलरूडां। वंदन'पूजन' नाटिक करता, निंदा करें ते बूढेरे । (अथवा) जेते मुगति पुहरे)।कु.॥३१॥ आदियुगादि से चल आवें,देवलनां कमठाण । भरत उद्धार शत्रुजय कीधो,छ। सहु अनियमाणारे ।कु. ॥३२॥ आद्रकुमार शय्यंभवभट्टा, प्रतिमा देखी बूज्या । भद्रबाहु गणधर इणि परे बोले, कठिन कर्म स्युज्यारे । कु. । ३३ ॥ श्रावकने ए सुकृत कमाई, प्रतिमा पूजा अधिकाई । जिन प्रतिमानी निंदा करतां,मति, बुद्धि, शुद्धि,गमाईरे । कु. । ३४ ॥ कठोल धान काचे गोरस जिम्यां,जीवदया किम होई। बद्रीनी विराधन करतां, पूर्वकमाई तें खोई रे । कु.। ३५ ॥ सुविहित समाचारीयी टलीया, रति विना रडवडीया । कुमत कदाग्रह नाथे राता,धरमथकी ते पडीयारे कु.॥३६॥ सोजत मंडन वीर जिनसरे॥ आगे पद हमारे हाथ नही आनेसे लिखे नही है. ।।इति समाप्त ।
१ एक धानकी बे फाडी होवे, उसको-कठोल, कहते है । मुंग, चणादि, उस बस्तुकी चिज छास. दही. दुध उष्ण किये बिना भेला करें तो, उसमें तुरत जीवोत्पत्ति होती है । इस वास्ते खानेकी मना है ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448