Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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(४) जिनप्रतिमा स्थापन दूसरा स्तवने. महा निशीथई लहीइ । अंध परंपर कुमत वासना, तो किम मनमां बहिइरे । कु. । ९॥ सिद्धारथराइं जिनपूज्या, कल्प सूत्रमा देखो। आणा शुद्ध दया मान धरता, मिलइ सूत्रनो लेखोरे । कु. । १० ॥ स्थावर हिंसा जिन पूजामां, जो तूं देखी धूजइ । ते पापीने दूर देशथी, जे तुज आवी पूजइरे । कु. । ११ ॥ पडिक्कमणइ मुनि दान विहारइ, हिंसा दोष अशेष । लाभालाभ विचारी जोता, प्रतिमामां स्यो द्वेषरे । कु. । १२ ॥ 'टीका, चूरणी, भाष्य, ऊवेष्यां, ऊखी, नियुक्ति । प्रतिमा कारण सूत्र ऊवेष्यां, दूरी रही तुज मुगतीरे । कु. । १३ ॥ शुद्ध परंपर चाली आवी, प्रतिमा वंदन वाणी । संमूर्छिम जे मूढ न मानइ, तेह अदिठ कल्याणीरे । कु. । १४ । जिन प्रतिमा जिन सरषी जाणइ, पंचांगांना जाण । वाचक जस विजय कहइ ते गिरुआ, किजई तास वषाणरे । कु. । १५ ॥
॥ इति ढूंढकशिक्षा स्वाध्याय ॥
॥ अथ दूसरी शिक्षाभी लिखते है । श्रीश्रुतदेवी तणइ सुपसाय,प्रणमी सदगुरु पाया। श्री सिद्धांत तणइ अनुसार इसीष कहुं सुखदायारे १।। कुमति का प्रतिमा ऊया, मुग्धलोकनइ भ्रमें पाडी, तूंपिंडभरइ कां पापईरे । कु. । २॥ सिद्धांत तणइपदि अक्षर अक्षर, प्रतिमानो अधिकार । तुमें जिनमतिमा कांइ ऊथापो, तो जास्यो नरक मजारिरे । कु. । ३ ॥ द्रव्य पूजानो फल श्रावकनइ, कहिउँछे फल मोटो । पूर्वाचारय प्रतिमा मानी,तो थाहरोमत षोटोरे कु.४॥ देशविरतिथी होय देवगति,तिहां प्रतिमा पूजे... १ देखो नेत्रांजन १ भाग. पृ. १०४ में सें १०८ तक. ॥ देखो नेत्रांजन
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