Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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ढूंढकभाईयांका संसारखाता. (४३) जन्मको प्राप्त होके, गणधरादि पुरुषोंने दिखाई हुई, तीर्थकरोकीमूर्तिकी भक्तिकरनेसें, कोई प्रकारसें मत चुको, उसमेंभी जो तत्वरहित संसारी पुरुषों है सो. सदाकाल-महा आरंभमें फसे हुये होनेसें, तीर्थकरोंकी-मूर्तिकी भक्तिसें, विमुख होते है सोतो, भवसमुद्रमें डुबते हुये समाकितकी प्राप्तिका कारणरूप जिनमूर्तिकी भक्ति रूपका, महान् जाहजको छोडकरके-अपनी भुजाओंको-स्थाही पछाडता है ? इहांपर इतनाही इसाराकरके-में-मेरा लेखकी समाप्ति करता हुं । सुज्ञेषुकिं अधिक विस्तरेण ॥
हमारे ढूंढक भाइयांके-संसार खाताका
स्वरूप, लिखते है ॥ पाठक वर्ग ! हमारे ढूंढक भाईओ, थोडा वखत पहिले, गणधरादिक महा पुरुषोंके वचनसें-विपरीत होके, कोई ऐसी विलक्षण प्रकारकी गेर समजको पुहचेथे कि-मूर्तिसें कुछ फायदा ही नहीं होता है। . परंतु अब यह नवीन प्रकारके जमानेमें, देश परदेशका अधिक व्यवहार हो जानेसें, चारों ही दिशामें मंदिर, मूर्तिका, पूजन करने वालोंका ही प्रचार विशेष देखके, अजान वर्ग है सो भी मात्तसे कुछने कुछ, फायदा होनेका संभव है, ऐसा सामान्य प्रकारसेंभी समजनेको लगे है। - - परंतु आश्चर्य वही होता है कि जैन धर्मका सनातन पणेसें दावा करने वाली, पंडिता ढूंढनी पार्वतीजी, अपना सत्यार्थ ग्रंथका पृष्ट. ३४ में, लिखती है कि-१ स्त्रीकी मूर्तिको देखके तो-पक्षी कामियांका काम जागता होगा ॥
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