Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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(९२) ढूंढकभाईयांका संसारखाता.
विचार-तीर्थंकरोंकी भक्ति से श्रावक जिन मूर्तिपूजे, सो तो अनंत संसारी । और तीर्थकरोंकी भक्ति करानेके वास्ते, उपदेश देनेवाले-गणधरादिक सर्व साधु, सो भी अनंत संसारी॥
परंतु जैनोंको पूजन करनेका वयं ऐसी-मिथ्यात्वी कामदेवकी, जड स्वरूप पथ्थरकी मूर्ति,यक्षादिकोंकी जड स्वरूप पथ्थरकी मूर्ति,और अदृश्य स्वरूप पितरादिकोंकी जडरूप मूर्ति, उनोंका पूजः नकी सिद्धि करके देनेवाली,और वीरभगवानके परम श्रावकोका-जिन पूजन छुडवायके, महा मिथ्यात्वी-पितरादिकोंको पूजानेवाली, ऐसी .यह विवेक शून्या ढूंढनीजी,तीर्थंकरोंके साथ-वैरभावके योगसे,अनंत संसारमें गीरती हुई, ते वीरभगवानके परम श्रावकोंको भी, गेरनेका रस्ता ढूंढ रही है ? । क्या उसका नाम संसारखाता मान्या है?१८
॥ फिर. पृष्ट. १४८ में, विवाह चूलिया सूत्रका पाठार्थमें, ढूंढनांजी लिखती है कि-१९ - हे भगवन् मनुष्य लोकमें, कितने प्रकारकी पडिमा ( मूर्ति) कही है, हे गौतम-अनेक प्रकारकी कहीं है, ऋषभादि महावीर (वर्द्वमान ) पर्यंत २४ तीर्थंकरोंकी। ___अतीत, अनागत-चोवीस तीर्थंकरोंकी, पडिमा । राजा
ओंकी पडिमा । यक्षोंको पडिमा । भूतोंकी पडिमा । जाव धूमके. तुकी पडिमा । हे भगवन् जिन पडिमाकी-वंदना करे, पूजा करे । हा गौतम-वंदे, पूजे ॥ १९ ॥
विचार-नंदीसूत्रका मूल पाठमें-सूत्रोंको गीनतीमें, आयाहुवा इस विवाह चूलिया, सूत्रका पाठार्थमें-यक्षादिकोंके प्रतिमाकी उपेक्षा करके; मात्र तीनोचोवीसीके (७२) वहुतेर तीर्थकरोंकी-प्रतिमाओंका, वंदन, और पूजन, करणेके विषयों-गौतम स्वामीजीने, प्र
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