Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
View full book text
________________
वीतरागी मूर्तिसे विपरिणाम होने दृष्टांत. (४१)
. और वह वर्षाका पानीको-पीनेकेही साथ, दिवाने ही बनगये ऐसें कोइ सेंकडो ही-नंग धडंग होके, बे अदवीसेंही फिरने लगे,
और छेवटमें ते दिवानोंने, राजाको भी-दिवाना समजकर, राज्यग. दीपरसें-उठा देनेकाही, विचार किया। परंतु ते विपरीत पानीकापानसे, पराधीन बने हुये दिवानोंने इतनाभी विचार नहीं किया कि हमारी सर्व प्रकारसे परवस्ति करके, अनेक प्रकारके संकटोसें रक्षण करनेवाला, हमारा परमोपकारी, राजाको, राज्य गद्दीपरसें उठादेके, हम हमारी ही गति क्या करलेंगे? .
परंतु ते विचारे-सर्वथा प्रकारसे, पराधीन हो जानेसें, उनके कुछ भी बसमें ही न रहाथा ? जब पीछेसें सुवर्षा हुये बाद, ते दीवाने लोकोने, सुवर्षा के पानीको पिया-तब ते होंसमें आके-बडा पश्चात्ताप ही करने लगेंकि-अहो हमने वडा ही अनुचितपणा किया कि-जो हमारा सर्व प्रकारसें-रक्षण करने वाला, और हमारा परमोपकारी, हमारा शिरके-मुगट समान, हमारा मालिककाभी हम तिरस्कार करनेकी बुद्धिवाले हो गये ? धिक्कार पडो हमारा जन्म जीवतरमें, इत्यादिक अनेक प्रकारका-पश्चात्तापसें, और ते उपकारी राजाकी-क्षमा चाहीने, और अपना परमोपकारी राजाकी साथ भीतिको धारण करतेहुयें, स्वछ, और सरल-न्यायनीतिका मार्गको पकडकर, अपना श्रुद्धव्यवहार मार्ग करनेको,तत्परहो गये। हेभव्यपुरुषो? - यह दृष्टांत देनेका-यह तात्पर्य है कि, जिनेश्वर देवकेही सदृशयह जिनमूत्तिको, सिद्धांतकारोंने-जगें जगें पर वर्ण किई हुई है.
और ते तीर्थंकरों है सो-हमारा परमोपकारी, राजाओंकेभी महाराजाओंके सदृश है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org