________________
(६६) ढूंढनीजीका-२स्थापना निक्षेप. करके । और-सत्य स्वरूपवाले, तीर्थंकरोंकी, मूर्तिपूजाके-पाठोंका, तदन-विपरीतार्थ, करते हुये । ___और-तीर्थंकरोंके, भक्तोंको-पाषाणोपासक, पहाड पून कोका, विशेषण-देके, उपहास्यको करते हुये । और तीर्थंकरोंके, भक्तोंको ही-मिथ्यात्वी, अनंत-संसारी, ठहरानेका-प्रयत्न करते हुये । ____ और छेक्टमें उनके, उपदेशकोंको भी-अनंत संसारी ही, ठहरानेका-प्रयत्न, किया है। - तो अब ख्याल करोकि-पितरादिक, जो मिथ्यात्वी-देवताओ है, उनोंकी-पथ्थरसें, बनी हुई-मूर्तियां है, उनकी-दररोज, पूजा, करनेकी-सिद्धि, करते हुये-हमारे ढूंढकभाईयो, तीर्थंकर भगवानसें. गुप्तपणे, हृदयमें-द्वेषभावको, धारण करनेवाले--सिद्ध, होते है या नहीं ?
इस विषयमें---योग्याऽयोग्यका, विचार--वाचकवर्ग ही, कर लेवेंगे।
प्रथम हमको-जिस ढूंढकाईने, ऐसा-कहाथा, कि-मूर्तियां पर, पाणी-गेरके, और-फल, फूल, चढायके-पाप बंधनमें, पडनाऐसी बात, हम-नहीं, चाहते है।
उनको हम-सूचना, करते है कि-हे ढूंढकभाई, जो तूं तेरी स्वामिनी-पार्वतीजीके, लेख सें-धर्म मार्गमें, प्रवृत्ति करनेकाविचार करेगा, तब तो-मिथ्यात्त्री जो-पितरादिक-देवो है, उ. नोंकी मूर्तिपूजा-दररोज, वीरभगवानके-श्रावकोंकी तरा, तेरेको भी करनी पड़ेगी।
क्यों कि ढूंढनीजीने-कयबलि कम्मा, के पाठसे, ते प
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org