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हँढनीजीका-४ भीष निक्षेप. मात्रकी अवज्ञासें दुःखे मानाथा । तो अब-नामें निलेप, सार्थक हुवांकि-निस्र्थक ? सो इहाँपर थोडासा फॉम करके,देखो । यहती ढूंढनीनीका-नाम निक्षेप, हुषा ॥ १ ॥ __ अब दूसरा-स्थापना निक्षेपको, देखोकि-शिव और पार्वतीजीके जैसें, ढूंढनी पार्वतीजीकी साथ-बदामास पुरुषकी-मूर्तिको, दाखल कीई होवेतो, क्या भक्तजनोंकरे-दुःख, न होगा ? हमती इस बातमें, यह कहतेहैकि-जैन धर्मको, नाम मात्रसे धारण करने वाले, सर्व पुरुष मात्रकोही-दुःख, होजायगा, तोपिछे खास उनके भक्त जनोंको-दुःख, होजानेमें क्या आश्चर्य है ? तो अब विचार करो. कि-स्थापना निक्षेप, सार्थक हुवाकि निरर्थक ?।। __ अब इहाँपर यत्किंचित् सूचनाओ, यह हैकि-जनै धर्मका स. नातनपणेसें दावा करने वाले होके, १ टीकाकार, टब्बाकार बगैरेसर्व महान् महान् आचार्योका, अर्थकी निदाकरते है सो। और तीर्थकर भगवानकी परम पवित्र, शांत, और भव्य-मूर्तिको, पथ्यर, पहाड आदि-निंद्य वचनसे, लिखते है सो । और ३परम श्राविका-द्रौपदीजीका, जिनपूजनको-छुडवायके, काम देवकी मूतिपू. जाकी-सिद्धि करनेका, प्रयत्न करते है सो । और ४ जैघाचारणादि मुनियोंका, जिनमत्तिकें-वंदनमें, ज्ञानका ढेरको-बतलाते है ।
और५ चमरेद्रका पाठसे, जिनमूर्तिका शरणमें-अरिहतपदका,नवीन प्रकारसें-अर्थ करके, बतलाते हैं सो । और ६ वीर भगवानके-परमश्रावकोका, नित्य पूजनरूप-जिनप्रतिमाका, लोपकरके-पितर, दादेयां, भूतादिकोंकी, मूर्तिपूजाकी-सिद्धि करके, दिखलाते है सो।
और ध्यक्षादिक-देवोंकी, पथ्थरकी-मूर्तिपूजासे, स्वार्थकी सिद्धिमानने वाले है सो । सनातन जैनधर्मी, अथवा तीर्थकर देवके-भ
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