________________
अब देखो २ पार्वतीकी तरफ हसिको देखके,
(७२) ढूंढनीजीकी-३द्रव्य निक्षेप. दूसरेकोभी तें-पूर्तिको, दिखाता हुवा, और उनोंकी पाससे मस्तक, झुकाने कीभी-इछा, करता रहाथा । और ते शिवभक्त, शिवपार्वतीजीकी-पूर्व अपर अवस्थाका, इतिहास, पंडितोको संतुष्ट द्रव्यको, अर्पण करकभी-श्रवण, करता रहाथा ३। तो अब साक्षात्पणे-शिबपार्वतीजीका, दर्शन करता हुवा-भक्तिके वस होके, मोहित होजावे, इसमें क्या आश्चर्य जैसा है ? अपितु कोई भी आश्चर्य जैसा नहीं है ४ ॥ अब देखो २ कामी पुरुष-पार्वती, ऐसा नाम मात्रका-श्रवण करता हुवा, वेश्या पार्वतीकी तरफ ही-अपना चित्तको, लगा देताथा १॥
और खास वेश्या पार्वतीकी, मूर्तिको-देखके, उसमें मोहित हो जावे, उसमें क्या आश्चर्यकी बात है ? २ । तैसेंहि वह कामीपुरुष, वेश्या पार्वतीकी-पूर्व अपर अवस्थाका, वर्णन-सुनके भी, मस्त ही हो जाताथा ३ । तो अब साक्षात् , वेश्या पार्वतीको-देखाता हुवा, कामके वस होके, उसमें-पोहित हो जावे, इसमें क्या आश्चर्यकी बात है ? ४॥ __ अब देख भाई ढूंढक, तूंभी, ढूंढनी साध्वी पार्वतीजीका-चारो निक्षेपको भी-उपादेयपणे ही, अंगीकार, कर रहा है । क्योंकि शिव पार्वतीजी के-हिसाबसें, ढूंढनीजीमें-पार्वती, नाम है सो, ढूंढनीजीके मानने मुगब भी-नाम निक्षेप ही, ठहर चुका है। और ढूंढनीनीने-निरर्थक भी, माना है । तो अब ढूंढनी पार्वतीजीके नाम मात्रसें, किसी पुरुषने यत् किंचित्पणे, अथवा अधिकपणे-अ. वज्ञा कीई, अथवा लिखी, तो, भक्तजनोंको-दुःख माननेकी, क्या आवश्यकता रहेगी ? .. .. परंतु हे ढूंढक भाईओ ! तुमतो दुःख मानतेही हो । जैसेंकिसम्यकशल्याद्धारमें, गतरूप जेठमल ढूंढकके-नामसे, किंचित्
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org