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चैत्य शब्दका - विचार.
( १३९ )
पाठक वर्ग ! यह हमारी किंचित्मात्रकी समीक्षासे आपही वि. चार किजीयेकि यह ढूंढनी, इत्यादि कहकर ११२ अर्थ ' चैत्य ' शब्दका कहती है, सो, और नाम अलंकार सुरेश्वर वार्तिकादि वेदांतका - जूठा प्रमाण दाखल करती है, सो; सत्यरूप मालूम होता है ? *
|| अब शब्द कल्पद्रुम प्रथम खंड पृष्ट. ४६२ का जूठा प्रमा णकी भी सत्यासत्य समीक्षा देखीये । प्रथम श्लोक-पहिले पादमेंक्लीव शब्दका वकारही उडादिया है, और विभक्तिकाभी - ठिकाना नही है, पंचम अक्षर - हस्व चाहिये, उहांपर दीर्घ है, और छठा सातमा अक्षर दीर्घ चाहिये, उहां हस्व है। दूसरे पादमें- पंचम अक्षर-हस्व चाहिये, उहां दीर्घ है, और छठा दीर्घके ठिकाने -हस्व है । तिसरा पादमें - अक्षरही ९ करदीये है, क्या सत्यपणा समजेगे । ' करिभः ' शब्दभी कोई कोशमे दिखता नही, तैसें 'हिरण्मय' भी शब्द नही दिखता है, तो किस अर्थकी सिद्धि करेंगें, जितना स्त्रीकी जातिमें जूठपणा, शास्त्रकारोंने वर्णन किया है, उतनाही जूठापणा, इसमें भी ढूंढलो, । ऐसा - महा जूठा लेखको, लिखके भी कहती है कि - हटवादियों का कथन - कौनसे पातालमें गया. है ढूंढनी अब इसमें थोडासा तो विचार कर कि - हठवादी हम हैं के तेरे ढूंढको ? और यह तेरा लेखही पातालमें गुसडने जैसा है कि सम्यक्क शल्योद्धारका । अछी तरांसें विचार कर । क्योंकि—सम्यक्क शल्योद्धारमें- चैत्यं जिनोक स्तद् बिंबं, चै त्यों जिन सभातरुः यह जो प्रमाण दिया है सोतो - श्री कुमा:
* || हमारे गुरुजी महाराज यह कल्पित अर्थका एक पत्रा, ढूंढक पाससें देखा हुवा कहतेथे, सो हमने भी सुनाया । अब यह जूठा लेख, प्रत्यक्ष पणे भी देख लिया !!
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