Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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(६) परमोपादेय-वस्तुके, चार निक्षेपमें-दृष्टांत. बच्चाको (बालकोंको) समजाना, सो ज्ञेयरूप बस्तुका, नामनिक्षेपसें, ज्ञानको प्राप्ति, समजनी. _____ और उन पदार्थोकी, आकृति खेंचके, उनके स्वरुपका-ज्ञानकी प्राप्ति करानी, अथवा जिस जिस दिशामें पदार्थ रहे हुवे है उसउस दिशाका-ज्ञानकी प्राप्ति करावनी, सो ज्ञेयरूप.पदार्थकास्थापना निक्षेपसें, ज्ञानकी प्राप्ति, हुई समजनी ॥२॥ ___ और उस ज्ञेयपदार्थोकी, पूर्वरूप अवस्था,अथवा अपरकालकी अवस्थाका, भिन्न भिन्नपणे समजूति करके दिखावना, सो ज्ञेयरूप वस्तुका-द्रव्य निक्षेपसे, ज्ञानकी प्राप्ति, हुई समजनी ॥ ३॥
॥ अब, जे जे ज्ञेय पदार्थका-१ नाम निक्षेपसें, २ स्थापना निक्षेपसें, और 3 द्रव्य निक्षेपसें, बालकोंको ज्ञानकी प्राप्ति कराईथी, सो सो पदार्थ, प्रत्यक्षपणे हाजर होनेपर, इसारा करके दिखाना के, यह वस्तु क्या है, इतना कहने मात्रसे, ते चतुर बालक, कहदेवे. गा कि, यह सिंहादिकका स्वरूप है। क्योंकि जिसको प्रथमके तीन निक्षेपोंका, यथावत् ज्ञानहोजायगा, उनको चोथा-भाव निक्षेपका, ज्ञानकी प्राप्ति होनेमें, किंचित् मात्रभी देर न लगेगी । इस बास्त वस्तुके चारों निक्षेपभी, सार्थक रूपही है, परंतु निरर्थकरूप कभी न होंगे । हां विशेषमें इतना है के, १ हेय वस्तुके चारों निक्षेप हेय, और २ ज्ञेय वस्तुके चारों निक्षेप ज्ञेय, और ३ उपादेय वस्तुके चारों निक्षेप उपादेय, रूपे अंगीकार करने योग्य होते है। इसबास्ते वस्तुके-चारों निक्षेप ही, सार्थक रूप है, परंतु निरर्थक रूप तीन कालमें भी न होवेगे ॥ इति ज्ञेयरूप वस्तुका, चारों निक्षेपसें-ज्ञान प्राप्ति करणेरूप, द्वितीयोअधिकारः
अब जैनोंको, परमोपादेय जो तीर्थंकरों है, उनके चारों
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