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(५८) - ढूंढनीजीका-२स्थापना निक्षेप. . - ख्याल करनेका यह है कि जो तुम ढूंढको, सनातन मतका दावाकरनेकी-इछा, रखते हो, तब तो वीरभगवान्के ते उत्तम श्रावकोंकी, दररोजकी करनीके मुनव-मूर्तिपूजा, तुमेरे-गलेमें, अवश्य मेव पडेगी ?।
ढूंढनीजीके-कहने मुजब श्रावक धर्ममें प्रवृत्ति करनेकी इच्छा रखोंगे तब तो, मिथ्यात्वी देव जो-पितरादिक है, उनकी-दररोज सेवा करनेमें, तत्पर होना पडेगा । अगर जो-टीका करोंके, कहने मुजब-अर्थ कबूल करके श्रावक धर्ममें प्रवृत्ति करोंगे, तब-तीर्थकर देवकी भक्तिका, लाभ दररोज मिलावोंगे । परंतु मूर्ति पूजाको अंगीकार किये बिना, तुम है सो, कोइ भी प्रकारके-ढंग, धडेमें, नगीने जावोंगे । यह बात तो-ढूंढनीजी के लेखसे भी, चोकसपणे से ही सिद्ध, हो चुकी है ।। ___और द्रौपदीजीकी-जिन प्रतिमाका पूजनमें, शास्वती-जिन प्रतिमाओंका विस्तारसें पूजन करने वाला, जो समकिती सूर्याभदेव है, उनकी-उपमा, दीई है । और द्रौपदीजीने मूर्तिके आगे नमुथ्थुणं, का पाठ भी-पहा हुवा है । ___और टीका कारोंने-जिनेश्वर देवकी, मूर्तिका ही-अर्थ, किया हुवा है । तो पिछे ढूंढनीजी-कामदेवकी, मूर्तिका-अर्थ, करके, उनके आगे-नमुथ्थुणं,का पाठ-किस प्रमाणसें, पढाती है ? । क्योंकि नमुथ्थुणं, के पाठमें तो, केवल वीतराग देवकी ही-स्तुति है, कुछ-कामदेवकी-स्तुति, नहीं है । जो ढूंढनीजीकी कुतर्क, मान्य हो जायगी ? । इस वास्ते-पाणी, गेरके, और-फल, फूल, चढायके भी, जो-श्रावक के विषयमें, मूर्तिपूजाका सिद्धातोंमे-पाठ,
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