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ढूँढनीजीका -२ स्थापनानिक्षेप.
( ११ )
वंदना, नमस्कार, करनेकी जरुर ही है, मात्र द्रव्य पूजा करणेकी, अज्ञा नहीं है ॥
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फिर भी देखो सत्यार्थ पृष्ट. १०९ से चमरेंद्र के पाठ - त्रण शरणमेंसें दूसरा - शरण अरिहंत चेइयाणि, के पाठसें- अरिहंतकी मूर्त्तिका, शरणा-लेनेका, दिखाया है। उसमें अरिहंतकी - मूर्तिका, अर्थको छोडने के लिये, अरिहंत पद, का नवीन प्रकारसें अर्थ करके दिखाती है । देखो इसकी समीक्षा- नेत्रांजनके प्रथम भागका - पृष्ट. १२१ से १२५ तक ।।
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अब इसमें विशेष — ख्याल करनेका, यह है कि अरिहंत चेइय, का पाठ - जिस जिस जगेपर सिद्धांतमें आया है, उस उस जगेपर आज तक के — टीकाकार, टब्बाकार, सर्व महा पुरुषोंने अरिहंतकी प्रतिमा (मूर्ति) का ही अर्थ, प्रगटपणे - लिखा हुवा है, तो भी ढूंढनीजाने अपनी ही पंडितानीपणा प्रगट करके उवाइ सूत्र के पाठ - बहवे अरिहंत चेइय, है उस पाठके विषय में, जिन मंदिरों का - अर्थ, करके भी, प्रक्षेपरूप, ठहरानेका जूठा, मयन किया ||
और -- अंबडजीके, अधिकारमें इसीही - अरिहंत चेइय का अर्थ, सम्यस्त्रत, वा, अनुव्रतादिक धर्म, का करके दिखाया ॥
और - आनंद श्रावकके, अधिकारमें इसीही - अरिहंत चेइय, के पाठको - लोप, करनेका - प्रयत्न किया ||
और जंघाचारण मुनियो के विषय में इसी ही चेइय, के पाठका - अर्थ में, ज्ञानका ढेरको, बतलाया ॥
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