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( ३४ ) ढूंढक भक्ताश्रित-त्रणें पार्वतीका-१ नाम निक्षेप.
और यह दूषण कैसें न रहें, ऐसा रस्ता-सिद्धांतानुं सार, हमको भी-दिखलाना चाहिये ॥ .. मूर्तिपूजक हे भाई ढूंढक-इस ग्रंथकारने-ढूंढनीजीकी सर्व कुयुक्तियांको-सिद्धांतके अनुसारसे सर्वथापणे विपरीत रूप दिखाके-चार निक्षेपका विषयको, अनेक प्रकारकी युक्तियांसें-समनाया है, तो भी क्या तेरी समज-हुई नहीं है, खेर, देख टुकमें इहांपर भी-समजा देते है। ___ यद्यपि-नाम-एक होके, अनेक वस्तुमें भी-नाप निक्षेप रूप, किया जाता है, परंतु इष्ट वस्तुमें किया हुवा ते-नामका निक्षेप, इष्ट रूप ही-मानना, उचित होता है । इसी बातकी सिद्धि-देखो सत्यार्थ पृष्ट. ५० में ढूंढनी भी करके ही दिखाती है कि कोईपार्थ, नामसे-गाली दे तो, हमे कुछ नहीं, कई-पार्श्व नामवाले, फिरते है। तुम्हारा-पार्थ, अवतार, ऐसे कहके-गालो दे तो-द्वेष आवे, इत्यादि ।
फिर भी देखो कि-जमल, इस-नामका निक्षेप, आजतक लाखो पुरुषों में होता आया है, तो भी-गतरूप हुवा, ढूंढक साधुमें-जेठमल, यह नामका निक्षेप है सो तो, तुमने भी-उपादेय रूप ही, माना है ।। - ढुंढक-हे भाई मूर्तिपूजा-जेटमल, इस नामका निक्षेपको, ह. मने कुछ-उपादेय रूपसें, नहीं माना है ॥ ___ मूर्तिपूजक-हे भाई भोला ढूंढक-ढूंढक साधुमें रखा हुवा-जेठ. मल, नामका निक्षेपको तो, तुमने-उपादेय रूप ही, माना है । क्यों कि हमारा गुरु वर्य-श्री आत्मा रामजी महाराजाने, जेठमलने बनाया हुवा-समकित सार-ग्रंथका, खंडन रूप-सम्यक शल्यों
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