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( ३६ ) ढूंढक भक्ताश्रित-त्रणें पार्वतीका-२स्थापना निक्षेप.
॥ इति ढूंढक भक्त आश्रित संवाद पूर्वक-त्रणें पार्वतीका-नाम निक्षेपका, स्वरूप ॥
॥ अब ढूंढक भक्त आश्रित-त्रणें पार्वतीका-स्थापना निक्षेपका, स्वरूप-संवाद पूर्वक ही, दिखावते है ॥
मूर्तिपूजक-हे भाई ढूंढक-देखकि, उपादेय वस्तुका-पुतला ( अर्थात् आकृति ) अथवा काली स्याहीका-फोटो [ मूर्ति ] है सोभी, उपादेय रूपसे ही-माननी, उचित होगी, परंतु ना मुकर जानेमें-तुमकोभी, बहुत प्रकारका-शोचही, करना पडेगा,
ढूंढक-मूर्तिकोतो हम-मूर्ति, मानते ही है, ना कौन पाडता है ? ॥
मूर्तिपूजक-हे भाई ढूंढक-में-तेरेको-पुछता हुं क्या, और तूं-उत्तर देता है क्या, में तेरेको यह पुछता हूं कि-जो अपना परम उपादेयरूप-तीर्थकरादिक संबंधीकी-मूर्ति है, सो तूं-परम उपादेयके स्वरूपसे, मानता है कि नहीं, इतने मात्रका-उत्तर, हमको दिखादे ॥
ढूंढक-वाहरे मूर्तिपूजक भाई वाह, क्या-उपादेय वस्तुकी पथ्थर आदिकी आकृति [मूर्ति भी,उपादेय रूपही, मानलेनी ॥ ___मूर्तिपूजक-हा भाई ढूंढक हा, हमतो-तीर्थकरादिक परम उपादेय वस्तुकी, मूर्तिकोभी-परम उपादेय रूपही, मानते है । जो तुमभी-उपादेय वस्तुकी, आकृतिको-उपादेय रूपसें, न मानोंगे तो-किसीके आगे, बात करने जोगेभी न रहोंगे। देखो प्रथम सामान्य मात्रसें, हमने-दिखाया हुवा, त्रणे पार्वतीकी-मूर्तिका
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