Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
View full book text
________________
(४२) ढूंढक भक्ताश्रित-त्रण पार्वतीका २स्थापना निक्षेप.
-
धनपुत्रादिक कार्यकी सिद्धिभी दिखला देती है । तो अब विचार करो कि - यक्षादिक व्यंतरोंका स्थापना निक्षेपसें बनी हुई पथ्थर की मूर्ति, सार्थकरूप हुई कि, निरर्थकरूप ? ढूंढनाजी तो केवल वीतरागी मूर्त्तिसें द्वेष धारण करके, अपने लेखकाभी पूर्वाऽ परके विचार किये बिना, जो मनमें आया सोही अगईं बगडं लिखके, अपना और भद्रक श्रावकों के, धर्मका नाश करनेकोही, उद्यत हुई है । ते सिवाय दूसरा प्रकारकी सिद्धितो-ढूंढनीजीके लेखमें, कुछभी दिखनेमें नहीं आती है ।
-
ढूंढक - हे भाई मूर्तिपूजक, हमारी ढूंढनीजीने स्थापना निक्षेप, कार्य साधक नहीं, ऐसा लिखके जो निरर्थक ठहराया है सो, तीर्थकरों का - जडरूप पथ्थर की मूर्ति पूजासें- मुक्तिका कार्यकी सिद्धि नहीं, इस अभिप्राय मात्रसें - स्थापनानिक्षेप, निरर्थकरूप लिखा है |
मूर्तिपूजक हे भाई ढूंढ ढूंढनीजीने केवल ऐसा नहीं लिखा है, उसने तो बतिरागी मूर्त्तिसें द्वेष धारण करके, और अपना लेखमें पूर्ण भद्रादिक यक्षोंके संबंधी - जडरूप पथ्थर की मूर्ति, धन पुत्रादिक कार्यकी सिद्धिरूप, सिद्धांतके पाठका विचार किये विना - सर्व वस्तुका स्थापनानिक्षेत्र [ मूर्त्ति ] को, निरर्थक ठहरायके, तीर्थकरों का - स्थापना निक्षेप ( मूर्त्ति ) भी, सर्वथा प्रकार सें
१ जैसे - तीर्थकरोका - नाम, स्मरण मात्रसें ढूंढनीजी मोक्षको पहुचानेको चाहती है तैसेही यक्षोका - नाम, स्मरण मात्र सें-- धन, पुत्रादिक क्यों नहीं दिया देती है ? काहेको फल फूलादिकसें जड पथ्थर की मूर्ति पूजा कराती हुई ढूंढक भाइयांको अनंत संसार में गेरती है ? ॥
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org