Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
View full book text
________________
(१०) ढूंढक भक्ताचित - पार्वतीका स्थापना निक्षेप.
श्रावक, दूर देशमें रह्या हुवा, अपना २ गुरुका - नामको, स्मरण करता हुवा, वंदना, नमस्कार, करेगा या नहि ?
ढूंढक - - हे भाई मूर्तिपूजक - जिस ढूंढक साधुको, गुरु करके मान लिया, उनका नाम, स्मरण करके, वंदना, नमस्कार, नहीं. करें तो पिछे किसका नाम लेके-वंदना, नमस्कार, करना ?
मूर्तिपूजक हे भाई ढूंढक, जिस गुरुको तूंने मान्य किया है, उस नामके - अनेक पुरुष होते है, और ते नामके अक्षरोंमे तो तेरा मान्य किया हुवा गुरुका, चिन्ह तो, कोई प्रकारका भी दिखता नही है, सो नामका उच्चारण मात्र करनेसें ही तूने वंदना नमः स्कार करनेका भी कबुल कर लिया, और उसी ही गुरुका स्वरू पको साक्षातपणे बोध करानेवाली - मूर्ति है, उसको वंदना नमस्कार करने का भी ना पाडता है, सो किस प्रकारका तेरा विवेक समजना! अथवा किस प्रकारकी धिठाइ समजनी ?
ढूंढक -- हे भाई मूर्तिपूजक हमारे ढूंढक गुरुजीने ऐसा फरमाया है कि गुरुजीका नाम देके तो, वंदना, नमस्कार, करना । परंतु उनकी मूर्त्तिको वंदना नमस्कार नही करना । क्यौं कि नाम तो, गुणाकर्षण ही होता है, सो भाव निक्षेपमें ही है, ऐसा पृष्ट. ११ में हमारी ढूंढनी पार्वती साध्वीजीने लिखा है। इस वास्ते गुरुजीका नाम देके - वंदना, नमस्कार करते है, परंतु उनकी मूर्त्तिको देख के किस प्रकार से करें ?
मूर्तिपूजक - हे भाई ढूंढक, इसमें थोडासा विचार करके, जो नाम, अनेक वस्तुओंके साथ संबंध वाला हो के पिछेसे ते - नाम, तेरा मान्य किया हुवा - गुरुके साथ, संबंध वाला हुवा है । जैसें कि- चंपालाल, सोहनलाल, आदि । अथवा-पार्वती, जीवी, आ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org