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(१८) ढक भक्ताश्रित -त्रणें पार्वतीका २ स्थापना निक्षेप:
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मूर्त्ति । और दूसरी है वेश्या पार्वती की मूर्ति । और तीसरी है ढूंढनी पार्वतीजी की - मूर्त्ति | यह तीन स्वरूपकी, तीन मूर्ति में सें, तेरा हृदय में - १. हेय । २ ज्ञेय । और ३ उपादेयका विषयरूपसें, विशेषपणे-बोधका कारणरूपे, कोई भी मूर्ति, है या नहीं ? प्रथम ही इसमें विचार कर कि वेश्या पार्वती की मूर्ति तुल्य, ढूंढनी पार्वतीजी की मूर्तिको मानना, यहतो कभी भी उचित न--गीना जायगा । जो कभी विशेषपणे सें राहत, केवल ज्ञेय स्वरूपसें, ढूंढनी पार्वतीजीकी-मूर्त्तिको, कहोंगे, तब तो जैसें ढूंढनी पार्वतीजीकी मूर्तिको खिचवा के घर में रखते हो, तैसें ही शिव पार्वती - जीकी मूर्तिभी खिचवा के तुमेरे ढूंढकों को घर में रखनी ही चाहिये, सो शिव पार्वतीजीकी-पूर्तिको, खिचवाके घर में, क्यों नहीं रखते हो ?
ढूंढक - हे भाई मूर्तिपूजक तूं वडा भोला है, हमने ढूंढनी पार्वतीजीकी-पूर्तियां, खिचना के घर में रखियां हैं, सो तेरी बात सत्य है, परंतु उस मूर्तियां से, कोइ कार्यकी सिद्धि होती है, ऐसा नहीं मानते है ।
मूर्तिपूजक हे भाई ढूंढ-ढूंढनी पार्वतीजी की मूर्तियां, तूं कि कार्य सिद्धि करना चाहता है ? इस बात में तूं विशेषपणे, इतना मात्रही कहसकेगा कि - उपदेशकी प्राप्तिरूप - कार्यकी सिद्धि, हमारी नहीं होती है । इनके शिवाय दूसरा विशेषमें कुछभी न कह सकेगा, परंतु दूर देश में रहे हुये ढूंढकों को, इस मूर्तियांका दर्शन से, ढूंढनी पार्वतीजी का स्वरूपकी स्मृति होती है या नहीं ? और उनकेबाद, जो ढूंढनीजी के भक्त बने हुये है, उनोंको कुछ-प्रीति, अमीति, कराने में वह मूर्तियां, निमित्तभूत है या नहीं? इसमें जो तेरा विचार हो सो, हमको बतलादे ||
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