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(३२) ढूंढक भक्ताश्रित-त्रण पार्वतीका १ नाम निक्षेप.
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मूर्तिपूजक हे भाई ढूंढक ! अपनी ढूंढनी पार्वतीजीके-मंतव्य मुजब - शिवजी की स्त्रीमें- पार्वतीजी, नाम है, सो कभी - नामनिक्षेप न होगा। क्योंकि सोतो असलरूप - नाम है, तोभी अपनेको तो ज्ञेय स्वरूपही मानना ठीक होगा | और ते अशलरूप-शिव पार्वतीजी का नाम, हिशाबसें बेश्यामें पार्वती नाम है सो नाम निक्षेप, होगा । परंतु वह कुछभी कार्य साधक, नहीं होनेसें हेय रूप जानके, अपनेको -- त्याग करना ही, अछा है । चाहे किसी पुरुष ने वेश्या पार्वती के नाम से, अप भ्राजनाभी किई, तोभी अपनेकोप्रीति या अप्रीति होनेका कुछभी कारण नहीं है । क्योंकि नेपा - पार्वती तो अपनेको निरर्थक रूपही है ।
अब अपनी साध्वी ढूंढनी में - पार्वतीजी नाम है, सोभी- शिव पार्वतीजीके हिशाबसें, नाम मात्रतो न कहा जावेगा -- किंतु नाम निक्षेपही, मानना उचित होगा । उहां क्या विचार करेगें ? क्योंकि अपनी ढूंढनी पार्वतीजीने १ नामनिक्षेप । २ स्थापना निक्षेप । २ द्रव्यनिक्षेप | यह तीनों निक्षेप, कार्य साधक नहीं - ऐसा लिखके - निरर्थक रूप ही, ठहराये है । जो अपने ढूंढनी पार्वतीजीका - नामको, ज्ञेवरूप, मानीयेतो - शिवपार्वतीजी के मान्यता तुल्य हो जायगी । अगर जो- हेय रूप मानीयेतो- वेश्या पर्वत तुल्य - निरर्थकरूप होजायगी, तब तो दंडनी पार्वतीजीके - नामको साथ, हमारा कुछ भी संबंध न रहेगा ।
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और इसी नाम से, गालियां देनेवाला - हमको कुछ भी, बोलनेको न देवेगा कि हम तो मात्र नामको, उच्चारण करके गालीयां देते है इसमें तुमेरा हम क्या लेते है ? ऐसा कहेगा। इस वास्ते ढूंढनीजीकेनाम निक्षेपका, विचार ही करना पडेगा ||
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