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चार निक्षपाकी समजूती. (११) की-क्रियाका और उनके गुणोंका, जब अपना स्वरूपमें वर्तन होता होवें, अथवा वस्तु है सो-अपना स्वभावमें-स्थित होवें, तब उस वस्तुका नाम-भाव निक्षेप, कहते है ४ ॥
॥ इति चार निक्षेपका-लक्षण स्वरूप ।।
। अब चार निक्षेपके बिषयमें-किंचित् समजूति, लिखते है ।।
दूनीयामें अछी या बुरी जे जे वस्तु ( अर्थात् पदार्थ ) है, उसका कुछने कुछ-नाम, रखा हुवा होता है । सो-वस्तु, अपना अपना प्रसिद्ध-नामसे ही, अपना अपना-स्वरूपका पिछान, संकेतके जानने वाले पुरुषोंको, करादेते है, सोही नाम-नाम निक्षेपका विषय है ॥ १॥
फिर वही नामका पदार्थकी-( अर्थात् वस्तुकी ) आकृति [ अथात् मूर्ति ] है सोभी, उसी वस्तुका बोधको करानेमें, विशेषपणे, कारणरूपे हो जाती है, सोही स्थापना-स्थापना निक्षेपका विषय है २ ॥ और वही नाम, और आकृति के, स्वरूपका वस्तुकीपूर्वकालकी अवस्था, अथवा अपरकालकी अवस्था है सोभी, उसी वस्तुका ही बोधको करानेमें कारणरुपे होजाती है, सोही द्रव्य-द्रव्य निक्षेपका, विषय है ३ ॥ जब वही नामकी, और आकृतिकी, और पूर्व अपर अवस्थाका स्वरूपकी 'वस्तु' [अर्थात् पदार्थ] साक्षात्पणे लोको देख लेते है, अथवा ज्ञान करलेते है तब उस, वस्तुका-यथावत् पिछान करलेते है कि-जिस वस्तुका-नाम, सुनाथा, पिछे उनकी-आकृति भी देखीथी, और पूर्व अपर अवस्थाका गुण या दोष सुनाथा, सोही वस्तु यह है ४ ॥ इस विषयका विचारको
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