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करेंगे ? अर्थात् कभीभी आदर न कर सकेंगे ॥
इस वास्ते पदार्थोंका जो प्रथमके-त्रण निक्षेप है, सोही कार्यकी सिद्धि कराने में - सार्थक, और परम उपयोग स्वरूपकेही है । परंतु ढूंढकोंने दिखाये हुये निरर्थक स्वरूपके नही है । इस विषय में ढूंढनी पार्वतीजीकी, और ढूंढक बाडीलाल शाहकी मतिही विपरीत पणे हो गई है | फिरभी देखोकि - जिसको पदार्थों का प्रथमके-त्रण निक्षेपके विषयका, यथार्थ ज्ञान नहीं होता है उसका भाव निक्षेपका विषय को भी विपरीतपणेही ग्रहण करनेको लग जाता है। जैसेकि - भाव निक्षेपका विषयभूत, साक्षात् जेरी, वस्तु है, परंतु उनका प्र थमके-त्रण निक्षेपका, विषयको - नहीं जाननेवाला बालक है सो, उसी वखत उस- जेरी वस्तुको मुखमें डालनेको जाता है । और I भावनिक्षेपका विषयभूत साक्षात् जेरी सर्प, बस्तु है, उनको-पकsaster जाता है | इसवास्ते दूनीयामें जो जो पदार्थों है उनका प्रथमके-त्रण निक्षेप विषयका ही बोध लेनेकी जरुरी है । और वह त्रण निक्षेप ही, कार्यके साधक बाधकमें, परमोपयोगी स्वरूपके है । तो भी ढूंढक, और ढूंढनीजीने-त्रण निक्षेपको - निरर्थक, और उपयोग विनाके, लिख मारे हैं । इतनी मूढता करके भी-संतोषको जहीं प्राप्त हुयें है, किंतु सर्व गणधर महाराजाओंको, और सर्व महाराजाओं को भी निंदित कर दिये है । ऐसें सर्वथा पत्र उपपरीत विचारवालोंको हम कहां तक शिक्षा देवेंगे || कि.
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निक्षेपमें सार्थकता निरर्थकताका, विचार.
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इत्यलं विस्तरेण.
॥ इति । चार निक्षेपकी - सार्थकता, निरर्थकताका, विचार ॥
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